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________________ १६४ आनन्द प्रवचन : भाग ११ विंद राजा से शिकायत कर दी कि बड़ा भाई मेरी पत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध रखता है। राजा ने बड़े भाई को बहुत समझाया, जब वह किसी भी तरह से न माना, तब राजा ने उसे अपने राज्य से निष्कासित कर दिया। वह क्रोधाविष्ट होकर इधर-उधर परिभ्रमण करने लगा । एक जगह तापसों का आश्रम था, वहाँ पहुँचकर उसने तापसों से तापस दीक्षा ले ली। एक बार वही कमठ तापस घूमता-घामता अपनी जन्मभूमि में आया। वहाँ घोर तप करने लगा। लोगों में उसकी काफी शोहरत हो गई । कमठ के छोटे भाई (पार्श्वनाथ के जीव) ने जब यह सुना तो सोचा-'अब बड़ा भाई तापस हो गया है । उसके प्रति मन में से दुर्भाव निकाल देना चाहिए और वैरभाव न रखकर क्षमायाचना कर लेनी चाहिए । अतः वह कमठ तापस के पास गया और प्रणाम करके क्षमायाचना करने लगा। उसे देखते ही तापस का क्रोध उमड़ा-'क्षमा मांगने के बहाने यह मुझे और दग्ध करने आया है, इसी के कारण मेरी ऐसी दुर्दशा हुई। मजा चखाता हूँ इसे ।' यों क्रोध में आग-बबूला होकर एक बड़ा पत्थर उठाया, और प्रणाम करने के लिए झुके हुए छोटे भाई (पार्श्वनाथ के जीव) के सिर पर दे मारा। छोटे भाई का सिर फट गया। वह दुर्ध्यानवश मर कर जंगली हाथी बना । आश्रमवासी तापसों के पास कमठ की इस दुष्प्रवृत्ति का समाचार पहुंचा तो उन्होंने कमठ को आश्रम से निकाल दिया। वहीं से भाई के प्रति वैर की गांठ निविड़ हो गई। वह आगे पार्श्वनाथ के भव तक चली। कहने का मतलब यह है कि परस्त्रीगमन के कारण वैर की परम्परा कितनी लम्बी चलती है, इसका यह ज्वलन्त उदाहरण है। इस कारण परस्त्रीगमन अधर्म नहीं तो और क्या है ? परस्त्रीगमन मनुष्य में रहे हुए क्षमा, दया, सन्तोष, विनय सत्य, अहिंसा, सेवा आदि धर्मजनक गुणों को नष्ट कर देता है। परस्त्री-सेवन अपराध है-राजकीय कानून के अनुसार परस्त्री के साथ अनाचारसेवन करना अपराध है, उसका दण्ड उसे मिलता है। बहुत से दुराचारी लोग राजकीय कानून की परवाह नहीं करते । जैसे-तैसे रिश्वत देकर छूट जाते हैं। मगर ऐसे लोग कभी न कभी पकड़ में आ जाते हैं, तब बुरी तरह पिटते हैं, भयंकर सजा मिलती है। मृत्युदण्ड तक की सजा उन्हें भोगनी पड़ती है। कभी-कभी ऐसे लोग बलात्कार करके उस स्त्री की हत्या कर देते हैं। जब पकड़े जाते हैं, तब उन्हें भयंकर सजा यहां मिलती है। सन् ७० की एक सच्ची घटना अखबार में पढ़ी थी। गुण्डा विरोधी स्टाफ के इन्चार्ज श्री मलिकराय ने मुहल्ला किशनपुर में छापा मारकर दो नौजवान औरतों -मिंदों और शीला तथा उनके प्रेमियों--दर्शन और मथुरादास को गिरफ्तार कर लिया। ये दोनों औरतें व्यभिचार के लिए जालंधर लाई गई थीं। बाद में २५) रु० के लेन-देन पर परस्पर झगड़ा हो गया था। पुलिस ने गिरफ्तार करके उन्हें भारी सजा दी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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