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________________ परस्त्रीसेवन सर्वथा त्याज्य १६३ एक सेठानी एक भंगी से फँसी हुई थी। एक बार सेठानी के दुराचार को उसी के पुत्र ने देख लिया। उसने कहा-"मैं पिताजी से कह दूंगा।" यह सुनते ही तत्काल उस नर-राक्षसी ने अपने पुत्र को छरे से घायल कर दिया और गला घोटकर मृत्यु की गोद में सुला दिया। फिर पुत्र की लाश को भोजनशाला की छत में छिपा दिया। सेठ बाहर से आकर भोजन करने बैठा ही था कि उसकी थाली में ऊपर से लड़के के रक्त की बूंद गिरी। सेठ भोजन छोड़कर ऊपर देखने को जाने लगा। पीछे-पीछे सेठ का बड़ा लड़का भी जाने लगा। सेठानी ने सोचा-अब यह बात छिपी. नहीं रहेगी। मेरी निन्दा भी होगी और मौत की सजा भी मिलेगी। अतः उसने तत्काल ही सीढ़ी से नीचे उतरने के द्वार को बन्द कर दिया, और पास के घास वाले कमरे में आग लगाकर वहाँ से फरार हो गई। - हाय ! एक पाप को छिपाने के लिए परपुरुषगामिनी व्यभिचारिणी को हिंसा, असत्य, दम्भ, चोरी आदि कितने पाप करने पड़े। परस्त्रीसेवन अधर्म है-परस्त्रीसेवन करने वाले व्यक्ति में धर्म की कोई मर्यादा नहीं रहती। परस्त्रीगामी पुरुष अपनी बहन, बेटी, पुत्रवधू, अनुजवधू, भतीजी, चाची, ताई, मित्रपत्नी, गुरुपत्नी, राजपत्नी आदि का कोई विचार नहीं करता। वह कामान्ध होकर धर्ममर्यादा को तोड़कर अपनी बेटी, बहन या माता के समान स्त्री के साथ भी विषय-भोग में प्रवृत्त हो जाता है। वे बेचारी एक बार फँस जाने के बाद समाज में इज्जत जाने के डर से कुछ भी बोल नहीं सकती। परस्त्रीगामी के भाग्य में स्त्री-जाति को माता और बहन के रूप में देख सकना बदा ही नहीं होता । वह प्रत्येक स्त्री को भोग्या की दृष्टि से ही देखता है। ऐसा परस्त्रीलम्पट हर किसी पतिव्रता, सती, सुन्दर स्त्री को फँसाने और उसके साथ अनाचारसेवन करने की धुन में रहता है। ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास में और वर्तमान समाचार पत्रों में मिलते हैं जिनसे ज्ञात होता है कि परस्त्रीसेवी कामान्ध व्यक्ति अपनी पुत्री, बहन या माता के तुल्य स्त्री के साथ बलात्कार करने में नहीं हिचकिचाता। कई बार तो एक व्यक्ति की परस्त्रीगामिता के कारण कई जन्मों तक लगातार वैर-विरोध चलता रहता है। भगवान् पार्श्वनाथ के तीर्थकर बनने से पूर्व दस भवों का वर्णन मिलता है। वह बड़ा रोचक और बोधप्रद है। तीर्थकर भव से पूर्व दसवें भव में भ० पार्श्वनाथ का जीव और कमठ का जीव दोनों सगे भाई थे । इनके पिता राजा अरविंद के पुरोहित थे।पार्श्वनाथ का जीव छोटा भाई था और कमठ का जीव बड़ा भाई । बड़ा भाई छोटे {भाई की स्त्री पर मोहित होकर उसके साथ दुराचार सेवन करने लगा। बड़े भाई की पत्नी को यह सब पता लग गया। उसने अपने देवर (पार्श्वनाथ के जीव) से सारी बातें कह दीं। छोटा भाई बहुत ही क्षुब्ध और क्रुद्ध हुआ। उसने जाकर अर-, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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