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१६२ आनन्द प्रवचन : भाग ११ उस पर अत्यन्त मोहित होकर रात-दिन मन में उसके पाने का संकल्प-विकल्प करना, उसके विरह में सुध-बुध भूल जाना, खाना-पीना छोड़ देना, मूच्छित हो जाना, मन में उसे पाने का निश्चय करना, उसका अपहरण करना, उसे किराये के स्वतंत्र मकान में रखकर जब तब उसके साथ व्यभिचार करना, सिनेमा, चल-चित्र या नाटक आदि में स्त्रियों को देखकर उन पर मोहित हो जाना, आदि सब क्रियाएँ परस्त्रीसेवन के अन्तर्गत हैं। परस्त्रीसेवन : क्यों त्याज्य ? क्यों निषिद्ध ?
प्रश्न होता है, आखिर परस्त्रीसेवन क्यों निषिद्ध और त्याज्य बताया गया है ? जैसी अपनी स्त्री, वैसी परस्त्री ! यह प्रतिबन्ध क्यों ? आखिर इस वैवाहिक बन्धन के पीछे कौन सा लाभ छिपा हुआ है ?
इसका समाधान यही है कि नीतिकार, समाजशास्त्री, धार्मिक महापुरुष, भारतीय संस्कृति के उन्नायक तथा अनुभवी पुरुष एक स्वर से इस बात को स्वीकार करते हैं कि परस्त्रीसेवन पाप है, अधर्म है, अपराध है, नैतिक पतन है, भ्रष्टाचार है, गृहस्थ-जीवन की सुख-शान्ति को आग लगाने वाला अनिष्ट है, स्वच्छन्दाचार है, निरंकुशता है।
आप कहेंगे, कैसे ? लीजिए क्रमशः इसका समाधान ।
परस्त्री सेवन : पापरूप है-जो व्यक्ति परस्त्रीगमन करता है, वह धर्म की किसी मर्यादा को नहीं मानता, उच्छखल होकर धर्म-मर्यादाओं का अतिक्रमण करता है। गृहस्थधर्म की मर्यादा बताते हुए श्रावक प्रतिक्रमण में कहा है
'सदारसंतोसिए अवसेसं मेहुणंविहि पच्चक्खाइ जावज्जीवाए'
परस्त्री में सन्तुष्ट पति प्रतिज्ञा करता है कि "वह यावज्जीवन अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़कर समस्त स्त्रियों के साथ मैथुन-सेवन का त्याग कर रहा है।" यही कारण है कि परस्त्रीसेवन पापजनक है। वह धर्म-मर्यादाओं को ताक में रखकर हिंसा, असत्य, चोरी, अपहरण, परिग्रह एवं व्यभिचार (अब्रह्मचर्य) रूपी महापाप का कारण तो है ही इसके अतिरिक्त क्रोधादि कषाय, राग-द्वेष, वैर-विरोध, कलह, . निन्दा आदि पापों का भी कारण हैं।
परस्त्रीगामी पुरुषों द्वारा आये दिन भ्रूणहत्या, शिशुहत्या तथा अपने पुत्र, प्रेमिका के पति आदि की हत्याएँ धड़ल्ले से की जाती हैं। __ इसीलिए वाल्मीकि रामायण में कहा गया है
___'परदाराभिमर्शात् तु नान्यत् पापतरं महत् ।' -परस्त्री से अनुचित सम्बन्ध करने से बढ़कर कोई बड़ा पाप और कोई नहीं है। . . जो परस्त्री परपुरुष के फंदे में फंसती है, वह भी क्रूर और हत्यारी बन " जाती है । स्थानकवासी जैन साधु स्व० मुनि श्री विनयचन्द्रजी ने अपने ग्रन्थ में कच्छ की एक करुणा घटना का उल्लेख किया है
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