SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परस्त्रीसेवन सर्वथा त्याज्य १६१ इस प्रकार अपने सामने मैथुन कराकर तमाशा देखने वाले परस्त्रीकामुक लोग मानसिक व्यभिचार की उन्मत्त अवस्था के नमूने हैं। ८. क्रिया निवृत्ति-प्राकृत या अप्राकृत किसी ढंग से छल, बल, युक्ति और प्रलोभन द्वारा किसी स्त्री को अपने जाल में फंसाकर उसके साथ प्रत्यक्ष सम्भोग करना या बलात्कार करना क्रिया निर्वृत्ति है। बहुधा परस्त्रीगामी लोग दासी मजदूरिन, चमारिन, भंगिन और रसोईदारिन आदि नीच जाति की स्त्रियों से फंसे होते हैं । वे न जाति देखते हैं, न उम्र और न रंग-रूप ही । बस, किसी भी तरह अपना व्यसन-पोषण करना ही उनका लक्ष्य होता है। बम्बई में बहुत-सी ऐसी नसें हैं, जो गरीब हैं, परन्तु वे जिन डॉक्टरों के अधीन रहकर रोगी की परिचर्या करती हैं, उनमें से अधिकांश नसें डॉक्टरों से लगी हुई होती हैं । परस्त्रीगामी पुरुषों की वृत्ति इतनी नीच हो जाती है कि वे न तो अपनी शक्ति देखते हैं, न धर्ममर्यादा, लोक-लज्जा और समाज-भीति का खयाल करते हैं, अपने मित्र, पड़ौसी या गुरु तक की स्त्रियों पर डोरे डालते रहते हैं। कई व्यभिचारी तो अपनी शक्ति और हैसियत देखे बिना ही परस्त्री को अपने जाल में फंसाते रहते हैं, फँसाते क्या, स्वयं जान-बूझकर फंसते हैं। ये सब मैथुन के आठवें अंग क्रिया-निष्पत्ति के उदाहरण हैं। क्रियानिष्पत्ति से पहले के सातों अंगों में बहुत-से अंगों का प्रयोग परस्त्रीगामी पहले ही कर चुकता है। यह भी परस्त्रीसेवन ही है—कई लोग यह शंका उठाते हैं कि यदि कोई स्त्री (जो स्वस्त्री न हो) किसी को चाहती है, बार-बार सहवास के लिए प्रार्थना भी करती है, इसके लिए उपहार और अन्य प्रलोभन भी देती है, अपना शरीर उसे सौंपने को तैयार होती है, ऐसी स्थिति में यदि वह पुरुष उसका आलिंगन, चुम्बन आदि करता है, उसके साथ स्पर्शसुख का आनन्द लेता है या उसकी कामेच्छा-पूर्ति करता है तो क्या आपत्ति है । इसका समाधान यह है कि परस्त्री की इच्छा न हो, तब उसके साथ जबर्दस्ती सहवास करना तो बलात्कार है ही, परन्तु परस्त्री की इच्छा हो तब भी उसके साथ सहवास आदि करना भी परस्त्रीसेवन है । सभी धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, आचारशास्त्र तथा समाजशास्त्र इस बात को अनैतिक, व्यभिचार, अधर्म, नैतिक पतन, नीतिमर्यादा का उल्लंघन एवं परस्त्रीसेवनरूप व्यसन ही मानते हैं । निष्कर्ष यह है कि परस्त्री के साथ उसकी इच्छा या अनिच्छा से संभोग करना, इतना ही परस्त्री-सेवन नहीं है, अपितु परस्त्री के साथ वासना की दृष्टि से क्रीड़ा करना, उसे विकारी दृष्टि से देखना, उससे छेड़-छाड़ करना, प्रेमपत्र लिखना, उसे अपने वश में करने के लिए वस्त्र-आभूषण, रुपये, नौकरी दिलाने, इनाम दिलाने या किसी भी प्रकार की सुविधा देने का लालच देना, किसी भी तरह से छल-वल-कल एवं भय से उसे अपने चंगुल में फंसाने का प्रयत्न करना, उसे पटाने के लिए एकान्त में बातचीत करना, उसके सामने कामक्रीड़ा का प्रस्ताव रखना या कुचेष्टा करना, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy