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परस्त्री-सेवन सर्वथा त्याज्य
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आगे की कथा लम्बी है। उससे यहाँ कोई प्रयोजन नहीं है । निष्कर्ष यह है कि पापदृष्टि से परस्त्री को देखने के कारण ही आगे की पाप-परम्परा बढ़ी और वही मणिरथ को ले डूबी।
५. गुह्य भाषण-पराई स्त्री के साथ एकान्त में गुप्त बातचीत करना, स्त्रियों से संकेत द्वारा एकान्त में मिलना या मिलने की इच्छा प्रगट करना, मिलने पर कामसम्बन्धी अभिसन्धि करना, स्त्रियों में बार-बार आना-जाना और उन्हें गुप्त पत्र लिखकर अपने नीच अभिप्राय को प्रगट करना आदि सब गुह्य भाषण के अन्तर्गत हैं । गुप्त रूप से एकान्त में किसी स्त्री से बातचीत करने पर लोगों को शंका हो जाती है। इन घटनाओं को लेकर मार-पीट एवं हत्याकाण्ड तक की नौबत आ जाती है। ऐसा न हो तो भी सीधी-सादी, शान्त, भद्र परस्त्री या कन्या के मन में काम-वासना की आग भड़काकर उन्हें अपने पति और परिवार से अविश्वासिनी और झूठी बनाना, कितना जघन्य पापयुक्त और निष्ठुरता का कार्य है।
६. संकल्प-इसके दो अर्थ होते है—(१) संकल्प करना और (२) रंगीन कल्पनाओं में रचे-पचे रहना। चाहे जो हो मैं अमुक (पर) स्त्री से तो व्यभिचार करूंगा ही । इस प्रकार की धारणा ही संकल्प है।
पूर्वोक्त पाँचों प्रकार के मैथुनांग जब परस्त्री के लिए भीतर ही भीतर जोर पकड़ते हैं, तब उनका विरोध नहीं होता और स्थिति यहाँ तक आ पहुंचती है । यह वह स्थिति है जहाँ आदनी कामान्धता की दशा में पहुंच जाता है। चोरी-छिपे से काम करना, हत्या मारपीट, नदी-नाले लाँघना, अपनी जान हथेली पर रखना यह सब कामान्ध के लिए नगण्य बातें हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में हजारों बोतलों का नशा चढ़ जाता है।
गोस्वामी तुलसीदासजी अपनी जवानी में इसी तरह अपनी पत्नी रत्नावली के प्रति विषयान्ध और आसक्त थे। वे उसके रूप, यौवन और हावभाव पर इतने मतवाले हो गये थे कि एक दिन का वियोग भी उनके लिए असह्य था।
एक दिन वे कहीं बाजार गये हुए थे। पीछे से उनका साला आया और उनकी पत्नी को ले गया। घर आने पर तुलसीदासजी को पता चला तो वे उसके विरह से व्यथित होकर ससुराल चल दिये । भादों की अँधेरी रात में उफनती हुई नदी एक मुर्दे की ठठरी पर चढ़कर पार की। ससुराल के घर के द्वार पर पहुँचकर दरवाजा खटखटाया, नहीं खुला तो एक सर्प को पकड़कर उसके सहारे दीवार फाँदी और अन्दर जा पहुंचे। रत्नावली की नींद उड़ गई थी। उसने तुलसीदासजी को देखा तो कुछ क्षण तक समझ ही नहीं सकी कि मामला क्या है ? ये घर में कैसे घुस आए ? फिर जब उसे पता लगा तो उसने फटकारा कि "जितनी प्रीति आपकी मेरे इस हाड़-मांस चर्म से आच्छादित इस शरीर (हराम) पर है, उतनी ही अगर राम में होती तो वेड़ा पार हो जाता ! आपको लज्जा नहीं आती चोर की तरह किसी के घर में घुसते !"
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