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________________ १५८ आनन्द प्रवचन : भाग ११ बहुधा गाली खाते, पिटते और सजा पाते हैं, फिर भी हँसकर अपने पाप को बढ़ाते रहते हैं । पापदृष्टि से परस्त्री - प्रेक्षण का कुफल - युवराज युगबाहु के बड़े भाई मणिरथ राजा ने एक दिन अपने छोटे भाई की पत्नी मदनरेखा को अपने महल की छत पर केश सुखाते देखा तो उसके रूप- लावण्य एवं अंग-प्रत्यंग को देखकर वह कामविह्वल हो गया । उसी पापदृष्टि से प्रेक्षण का परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे मणिरथ मदनरेखा को पाने के लिए तरह-तरह के पैंतरे रचने लगा । उसके पति युगबाहु को उसने किसी बहाने से विरोधी राजा के साथ युद्ध करने भेज दिया । फिर उसने मदनरेखा को कुछ कीमती वस्त्राभूषण उपहार में भेजे । उसने जेठजी के द्वारा प्रेषित उपहार सद्भावपूर्ण समझकर रख लिये । दूसरी बार जब मणिरथ ने एक कुट्टिनी के साथ उपहार भी भेजा और अपना कलुषित सन्देश भी । तब मदनरेखा चौंकी और उसे जेठजी के हृदय की पाप भावना का पता लगा । उसने कुट्टिनी को फटकारकर और धमकाकर दोनों उपहारों के साथ वापस भेज दिया । क्षुद्राशय मणिरथ ने इसका विपरीत अर्थ लगाया और एक रात को वह स्वयं सज-धजकर मदनरेखा के महल की ओर जाने लगा । माता ने उधर जाते देख टोका और कहा - "यह तो युगबाहु का शयनगृह है, यहाँ कहाँ जा रहा है ?" फिर भी कामुक मणिरथ ने थोड़ी देर रुककर पुनः उधर डग बढ़ाए। फिर कामी कुत्ते की तरह मदनरेखा से अपनी हृदयेश्वरी बनने की प्रार्थना करने लगा । मदनरेखा ने साहस के साथ फटकारा और अनुपम शिक्षा दी । मदनरेखा को पटाने में असफल मणिरथ क्रोध से आगबबूला होकर लौटा । उसने दृढ़निश्चय कर लिया कि जब तक युगबाहु को समाप्त नहीं किया जाएगा, तब तक मदनरेखा मेरी वशवर्ती नहीं होगी । युद्ध में विजयी होकर जब युगबाहु वापस लौटा तो वनविहार के बहाने युगबाहु को नगर के बाहर ही सुसज्जित पटमण्डप में रखा । एक पटमण्डप में युगबाहु और मदनरेखा का निवास रखा । अवसर देखकर मणिरथ युगबाहु के पटमण्डप के पास आया । युगबाहु से उसने पीने के लिए पानी माँगा । युगबाहु ज्यों ही पानी लेकर आया, त्यों ही अपनी विषबुझी तलवार से उसने युगबाहु पर प्रहार किया । एक ही झटके में युगबाहु गिर पड़ा और अन्तिम श्वास लेने लगा । कोलाहल सुनकर पहरेदार वहाँ पहुंचे तब तक मणिरथ घोड़े पर चढ़कर चोर की तरह भागा। रास्ते में ही उस कामुक पापी मणिरथ को एक सर्प ने डस लिया । वहीं उसका प्राणान्त हो गया । परस्त्रीसेवन की अपनी दुर्भावना के कारण मणिरथ मरकर सीधा नरक में पहुंचा । इधर युगबाहु मदनरेखा द्वारा चार शरण सुनकर सद्बोध पाकर शुभ भावों के कारण समाधिमरण के फलस्वरूप स्वर्ग में पहुंचा । मदनरेखा ने अपनी शीलरक्षा के हेतु वहाँ से वनप्रस्थान करना ही उचित समझा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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