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________________ परस्त्री-सेवन सर्वथा त्याज्य १५७ आवाजें कसना, सीटी बजाना और फिर इस विषय में अपनी कुकृत्य कुशलता की डींग हाँकना इत्यादि सब कीर्तन नामक दुराचरण के अन्तर्गत है। ऐसे परस्त्रीगामी लोगों की मनोदशा के विषय में महाभारत में कहा है ___ यथा हि मलिनर्वस्त्र यत्रतत्रोपविश्यते। ___एवं चलितवृत्तस्तु वृत्तशेषं न रक्षति ॥ जैसे मैले वस्त्रों वाला मनुष्य निःसंकोच होकर जहाँ-तहाँ-गन्दी जगहों में बैठ जाता है वैसे ही मलिन विचारों वाला मनुष्य सदाचरण से इतना विचलित हो जाता है कि अवसर-कुअवसर अपने गन्दे भावों को निःसंकोच प्रकट कर देता है, वह रहे-सहे सदाचार को भी ताक में रख देता है। इससे जननेन्द्रिय उत्तेजित होकर वीर्यस्राव कर देती है। ३. केलि–पराई बहू-बेटियों के साथ हँसी-मजाक करना, आँखमिचौनी खेलना, गेंद, होली, ताश आदि खेलने के बहाने उनके साथ कुचेष्टा करना, खेल के बहाने अंगस्पर्श करना केलि है। खेल-कूद या अन्य कामवर्द्धक कीड़ाओं के बहाने परस्त्रियों के साथ बार-बार बैठने तथा विविध विषय वासना की बातें करने का साहस या चाव हो जाता है । इस प्रकार की कामोत्तेजक क्रीड़ाएँ करने से भोली-भाली कुआरी कन्या, विधवा या युवतियाँ अनायास ही फंस जाती हैं। __ अथवा कई स्त्रियाँ भी ऐसी होती हैं जो कामक्रीडारसिक पुरुष को अपने इशारे पर नचाती हैं । वे धीरे-धीरे उस पुरुष को गुलाम बना लेती हैं। फिर वे उस प्रेमी से उचित-अनुचित सभी कार्य करवा लेती हैं। फ्रांस के सम्राट १५वें लुई ने एक तुच्छ स्त्री के कहने से हजारों अयोग्य व्यक्तियों को उच्च पद दे दिया और हजारों को मौत के घाट उतरवा दिया । अतः परस्त्री के साथ प्रणयलीला करना सर्पिणी से खेलने के समान है। इससे कामोत्तेजना भड़क उठती है, वीर्यच्युत हो जाता है। ४. प्रेक्षण-परस्त्री को कामवासना की दृष्टि से देखना। बहुत से कामुक लोगों की यह आदत होती है कि वे पराई बहू-बेटियों की ओर बराबर ललचाई आँखों से ताकते रहते हैं, कई आँखें लड़ाते हैं, कई उनके चेहरे और अंगोपांगों को देखते हैं, कई लोग नग्न नहाती हई स्त्रियों को देखते रहते हैं, कई लोग स्त्रियों के शृंगार, हाव-भाव आदि को बहुत गौर से देखते हैं । सौन्दर्य और शृंगार का निरीक्षण जहाँ भी अपवित्र काम-वासना की दृष्टि से होता है, वहाँ परस्त्रीसेवन का पाप आ जाता है। विषय-वासना से दूषित मन से जब किसी स्त्री का सौन्दर्य-निरीक्षण होता है तब वह मानसिक व्यभिचार हो जाता है। जिसे इस तरह ऊँट की तरह मुंह उठा कर स्त्रियों को घूरने का चस्का पड़ जाता है उसकी बुद्धि कामराग के बीहड़ वन में चरने चली जाती है, फिर शर्म-लिहाज से उसे कोई सरोकार नहीं रहता। ऐसे लोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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