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१५६ आनन्द प्रवचन : भाग ११ मयी ललचाई आँखों से देखना, यहाँ तक कि परस्त्री को पाने का मन में विचार करना भी परस्त्री -सेवन है।
___काम-विकार की वृत्ति से परस्त्री से संसर्ग करना, एकान्त में उससे मिलना, उसके पास घंटों बैठना, उससे आँखें लड़ाना, उसका विकारदृष्टि से स्पर्श करना, उसके साथ अश्लील काम-कथा करना, उसे बार-बार घूर-घूरकर ललचाई आँखों से देखना, उससे भद्दी हँसी मजाक करना, उसका चित्र देखकर या उसे प्रत्यक्ष देखकर मन में उसे पाने का संकल्प करना, उसे पाने के विविध उपाय अजमाना आदि सब मैथुनांग परस्त्री-सेवन के अन्तर्गत हैं । स्मृतिकारों आठ प्रकार के मैथुन बताये हैं जैसे कि
स्मरणं कीर्तनं केलिःप्रेक्षणं गुह्य-भाषणम् । संकल्पोऽध्यवसायश्च क्रियानिष्पत्तिरेव च ।
एतन्मथुनमष्टांगं प्रवदन्ति मनीषिणः। स्मरण, कीर्तन, क्रीड़ा, प्रेक्षण, गुप्त-भाषण, संकल्प, अध्यवसाय और क्रियानिर्वृत्ति-मनीषियों ने इन आठों को मैथुन के अंग बताए हैं । परस्त्रीसेवन का तात्पर्य है-परस्त्री के साथ इन आठों ही प्रकार मैथुनों में से किसी भी प्रकार का मैथुनसेवन करना । इन पर क्रमशः चिन्तन करना चाहिए
१. स्मरण-परस्त्री का आसक्तिवश बार-बार चिन्तन-स्मरण करना । उसके भालिंगन, चुम्बन, दर्शन-स्पर्श, आदि की चिन्ता में निमग्न रहना। मन ही मन इस प्रकार परस्त्री का स्मरण करना भी परस्त्रीसेवन है, इससे वीर्य उत्तजित होकर निकल जाता है, कामाग्नि प्रज्वलित हो जाती है । मन में अस्थिरता और मलिनता पैदा हो जाती है । बार-बार परस्त्री के रूप-रंग, हाव-भाव आदि का चिन्तन करने से वे कुत्सित विचार मन में दृढ़ कुसंस्कार के रूप में जम जाते हैं। ऐसे परस्त्रीस्मरण करने वाले लोग अपने दैनिक कर्तव्य कर्मों को छोड़ बैठते हैं। रात-दिन इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं । पता लगने पर उनकी बदनामी और अपकीर्ति फैलती है। जनता का विश्वास उन पर से उठ जाता है। उनके प्रति घृणा हो जाती है।
२. कीर्तन--कुछ लोग इससे आगे बढ़कर जिस परस्त्री के सम्बन्ध में मन में स्मरण-चिन्तन किया था, उसके विषय में निर्लज्ज होकर अपने यार-दोस्तों, मिलनेजुलने वालों से चर्चा करते है, उसके अंगोपांगों, रूप-रंग, हाव-भाव आदि का बार-बार वर्णन करते हैं । उस परस्त्री के विषय में लज्जायोग्य और गन्दी चर्चा करने के वे इतने आदी हो जाते हैं कि खुल्लम-खुल्ला सबके समक्ष कहते रहते हैं। जहाँ इस प्रकार की अश्लील चर्चा चल रही हो, वहाँ वे उत्साह से शरीक हो जाते हैं, और कामुक वृत्ति से परस्त्रियों का वर्णन करते हैं।
अथवा पराई स्त्रियों को देखकर उनको लक्ष्य करके अश्लील गजलें गुन गुनाना, पराई बहू-बेटियों के प्रति अवाच्य शब्द कहना, भद्दी गालियाँ देना, उन पर
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