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________________ १५४ आनन्द प्रवचन : भाग ११ सेठजी की आँखों में पगले की बातें सुनकर चमक आ गई। भ्रान्ति के बादल फट गये। उनके हृदय में सत्य का सूर्य प्रगट हो गया। अभी तक वे मरणभय से दबे जा रहे थे, अब निर्भय हो गये । इस सत्य के प्रकाश में उन्हें अपना कर्तव्यपथ स्पष्ट दिखाई दिया। उनकी मानसिक व्यथायें रफूचक्कर हो गई। वे एकटक उक्त पगले की भोर देखने लगे । वह सच्चे माने में एक संत के रूप में दिखाई दे रहा था। सेठ को अनुभव की आँच में तपा हुआ सत्य मिल गया-अन्तिम समय में सही समझ-सम्बोधि ही काम देती है; भौतिक पदार्थों की ममता नहीं। बन्धुओ ! बोधिलाभ के ये पाँच अर्थ और उसका महत्त्व, उसकी दुर्लभता, उत्कृष्ट लाभता आदि सब पहलुओं से मैंने आपके समक्ष विवेचन प्रस्तुत कर दिया। आप भी महर्षि गौतम के इस संकेत को हृदयंगम करके अपने जीवन में उतारें न बोहिलामा परमत्यि लाभं । "संसार में बोधिलाभ से बढ़कर कोई लाभ नहीं है।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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