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बोधिलाभ से बढ़कर कोई लाभ नहीं - २ १४७
राग-द्वेष जग-बंध करत है, इनको नाश करेंगे । मर्यो अनन्तकाल ते प्राणी, सो हम काल हरेंगे ||१|| देह विनाशी मैं अविनाशी, अपनी गति पकरेंगे । नासी- नासी हम थिरवासी, चोखे ह्वं निकरेंगे ||२|| मर्यो अनन्तबार बिन समझे, अब सो सुख बिसरेंगे । आनन्दघन, निपट निकट अक्षर दो, नहिं सुमरे सो मरेंगे || ३ || कितनी मार्मिक बात कह दी है आनन्दघनजी ने । मिथ्यात्व के कारण अब तक अनेक योनियों में जन्म लेकर मरते आये लेकिन जब सम्यक्त्व का लाभ मिला तो मृत्यु पर प्रतिबन्ध लग गया । सीमा बँध गई । अधिक से अधिक अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल तक ही मृत्यु पीछा कर सकती है । इसी बीच में ही जन्म-मरण का अन्त होकर सम्यक्त्व के जरिये अमरत्व - सदा के लिए अविनाशीपन प्राप्त हो जाता है ।
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दूसरे शब्दों में कहें तो सम्यक्त्व मोक्षमन्दिर की नींव है, जिसके आधार पर अन्त तक जीव स्थिर होकर अन्तिम शिखर - सर्वज्ञता तक पहुँच जाता है ।
वास्तव में बोधि (सम्यक्त्व) परमात्मदशा का बीज है । जिस आत्मा में बोधिरूप बीज पड़ गया, वह आत्मा धन्य धन्य हो गया । एक दिन उसे परमश्र ेष्ठ फलमोक्ष या परमात्मपद - अवश्य ही प्राप्त होता है जिसे पाकर फिर कुछ भी पाना शेष नहीं रहता ।
कितना माहात्म्य है— बोधि – सम्यक्त्व -लाभ का । जिसे इसकी एक पल के लिए भी झलक प्राप्त हो जाती है, वह जीव निहाल हो जाता है— धन्य बन जाता है । सम्यक्त्व ही आत्मा के उत्थान का परमश्रेष्ठ हेतु है ।
सम्बोधि या सम्यक्त्व जीव के उत्थान में जितना प्रबल और प्रमुख हेतु है, उतना ही दुर्लभ है— उसे प्राप्त करना । कदाचित् यत्किञ्चित् आन्तरिक पुरुषार्थ के बल पर बोधि प्राप्त भी हो जाती है तो उसे संभालकर – सहेजकर रखना बहुत मुश्किल है । सम्यक्त्व की प्राप्ति के बाद विकास साधने के लिए सतत साधना की जरूरत रहती है ।
यद्यपि कोई-कोई जीव सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् तुरन्त ही अन्तरंग - पुरुषार्थ को प्रबल - प्रबलतम करके साध्य को सिद्ध कर लेते हैं, तथापि सभी जीवों के लिए ऐसा क्रम नहीं है । अधिकांश जीवों को सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद विशेष साधना करनी पड़ती है । यदि साधना के पुरुषार्थ की जागृति से पहले ही तद्रूप कर्मों के उदय होने से बोध ( सम्यक्त्व) विलीन हो गई तो अनन्त काल तक के लिए उसका वियोग हो सकता है । हाँ, यह बात अवश्य निश्चित है कि जिसने पलभर के लिए भी बोधि पा ली, वह अधिक से अधिक देशोन अर्द्ध पुद्गल परावर्तन जितने काल में परमात्म-पद प्राप्त करेगा ही ।
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