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________________ १४२ आनन्द प्रवचन : भाग ११ सुनकर कहा - हे धर्ममाता मेरे धर्मगुरु कहाँ हैं ? चम्पकमाला ने कहा- यहाँ से सौ योजन दूर पुराणपुर नगर में हैं । अमरगुरु जब गुरु के पास दीक्षा ग्रहण करने हेतु जाने को उद्यत हुए, तब राजा अरिकेसरी ने अमरगुरु के पुत्र को बुलाकर उनके पद पर स्थापित किया । अमरगुरु भी दानधर्म करके समयजलधि नामक केवली के पास पहुँचे और उनसे मुनिदीक्षा ग्रहण की । चारित्र पालन करके वे केवलज्ञानी बने व मोक्ष पधारे । I एक बार रानी चम्पकमाला के सम्यक्त्व की परीक्षा हुई । राजा अरिकेसरी की पहली पटरानी दुल्लहदेवी ने चम्पकमाला के प्रति द्व ेषवश कलंक लगाने तथा राजा द्वारा परित्यक्ता कराने हेतु सुलसा परिव्राजिका को लालच देकर तैयार किया । परिब्राजिका ने चम्पकमाला को धर्मभ्रष्ट करने का उपाय सोचा। उसे एक उपाय सुझा कि रानी चम्पकमाला के कोई पुत्र नहीं है, अत: उसे पुत्रप्राप्ति का उपाय बताऊँ । परिव्राजिका सुबह ही सुबह चम्पकमाला के आवासभवन में पहुँच गई और आशीर्वाद देकर कहने लगी- " रानीजी ! आपके कोई पुत्र नहीं है । और पुत्र के बिना पति का प्रम कम हो जाता है तथा पुत्र के बिना सद्गति भी नहीं होती । अतः पुत्र प्राप्ति के लिए मैं उपाय बताती हूँ, उसे कीजिए, उससे अवश्य ही पुत्र प्राप्ति होगी । इस मूली तथा मंत्र से रक्षा पवित्र करके उसे लेकर स्नान करो। काली देवी की पूजा करो और उससे पुत्र की याचना करो । " फिर तर्पण करके परिव्राजिका की कथा सुनकर सम्यक्त्व में दृढ़चित्त चम्पकमाला बोली“धूर्ते ! तेरी बातों से दूसरे ही लोग ठगा सकते हैं । जिन्होंने धर्म को जीवन में रमाया तथा संसार को दुःखरूप जाना है, वे तेरी बातों में नहीं आ सकते । पुत्र के बिना पति का प्र ेम कम हो जाता है, यह तुम्हारा कथन मूर्खताभरा है; क्योंकि चक्रवर्ती की रानी के पुत्र नहीं होता, फिर भी उसका स्नेह जीवनपर्यन्त रहता है । अपुत्र को सद्गति प्राप्त नहीं होती, यह कथन भी अज्ञानतायुक्त है । पुत्रोत्पत्ति अब्रह्मचर्यं (अधर्मं ) का फल है, जबकि ब्रह्मचर्य धर्म है और धर्म से ही सद्गति है । यदि पुत्र से ही सद्गति होती हो तो सूअर, कुत्ता, बिल्ली, मुर्गी आदि सब की सद्गति हो जानी afe | तथा रक्षा आदि से पुत्र हो जाता हो फिर तो जगत् में कोई भी पुत्रविहीन नहीं रहना चाहिए । काली देवी कौन है ? जो मांस-मदिरा में गृद्ध हो, उसे देवी मानना मूर्खता है । अत: वीतरागदेव और उनके सिद्धान्तों पर चलने वाले परमेष्ठी देवों के सिवाय मैं तो किसी और को वन्दन नहीं करती ।" इतना कहने पर भी जब वह धूर्त परिव्राजिका उठी नहीं, तब फटकार कर बाहर निकाली । क्रोध से आगबबूला होकर सुलसा परिव्राजिका ने अपनी पूर्वसाधित विद्या का स्मरण करके उससे प्रार्थना की" चम्पकमाला पर कुशीलवती होने का कलंक चढ़ाओ, जिससे राजा उसकी अवज्ञा करके त्याग करे, तथा वह जिन्दगी भर शारीरिक-मानसिक दुःख से संतप्त रहे ।" विद्या ने वैसा करना मंजूर किया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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