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आनन्द प्रवचन : भाग ११
दृष्टि लोगों के साथ अतिपरिचय (संसर्ग) । अपरिपक्व साधक शीघ्र ही इन तीनों परम तत्वों पर से फिसल जाता है। इसीलिए तो महर्षि गौतम ने संसार के सभी पदार्थों के लाभ से बढ़कर लाभ सम्यक्त्व-प्राप्ति (बोधिलाभ) को माना है। एक आचार्य ने इसका माहात्म्य बताते हुए कहा है
जह चिंतामणि मणिणं, कप्पतरु तरुवराण जह पवरो। तह सम्मत्तं वृत्तं, पवरं सव्वाण वि गुणाणं ॥१॥ पक्खीण पक्खीराओ, सुराण इंदो, गहण्ण जह चंदो। तह सम्मत्तं पवरं भणियं सव्वाण वि गुणाणं ॥२॥ अमयं सन्वरसाणं, नरवराण चक्की मुणीण गणनाहो ।
तह दंसण पसत्थं जाणह सव्वाण वि गुणाणं ॥३॥ . जैसे रत्नों में चिन्तामणिरत्न उत्कृष्ट होता है, वृक्षों में कल्पवृक्ष श्रेष्ठ माना जाता है, वैसे ही सभी गुणों में सम्यक्त्वगुण श्रेष्ठ है। पक्षियों में जैसे पक्षिराज (हंस), देवों में इन्द्र और ग्रहों में चन्द्र श्रेष्ठ माना जाता है, से ही सम्यक्त्व को सभी गुणों में श्रेष्ठ कहा गया है। सभी रसों में अमृत और सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ चक्रवर्ती तथा मुनियों में गणनाथ श्रेष्ठ माना जाता है, वैसे ही सभी गुणों में प्रशस्त सम्यग्दर्शन समझो । सम्यक्त्वरहित निरवद्य क्रिया का पालन करके जीव नौनवेयक (देवलोक) तक जाकर भी पुनः अपार संसार में परिभ्रमण करता है। नरक आदि गतियों में जीव अतिदुःसह दुःख सहन करते हैं, किन्तु उन्हें सम्यक्त्व सम्पत्ति प्राप्त हुए बिना मोक्षगति प्राप्त नहीं होती। सम्यक्त्व प्राप्त व्यक्ति, अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष चले जाते हैं । अतः वे व्यक्ति धन्य हैं, जो निरतिचार सम्यक्त्व का पालन करते हैं, परन्तु वे पुरुष धन्यों में भी धन्यतर हैं, जो दूसरों को सम्यक्त्व प्राप्त कराते हैं।
सम्यक्त्व-प्राप्त व्यक्ति कैसे उस पर दृढ़ रहता है, और दूसरों को भी सम्यक्त्व प्राप्त कराता है ? इस सम्बन्ध में एक प्राचीन उदाहरण लीजिए
चम्पकमाला विशालानगरी के राजा ललितांग की इकलौती पुत्री थी। राजा की अनुमति से कुमुदचन्द्र उपाध्याय उसे पढ़ाते थे। कुछ ही वर्षों में वह साहित्य, न्याय, लक्षणशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र आदि विद्याओं में पारंगत हो गई । एक दिन राजसभा में कुणालानरेश अरिकेसरी अमरगुरु नामक प्रधानपुरुष के साथ आए । उस समय राजकुमारी चम्पकमाला की ज्योतिष विद्या की परीक्षा हुई, जिसमें वह पूर्णतया सफल हुई।
कालान्तर में अरिकेसरी राजा के साथ चम्पकमाला का खूब धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ । राजा चम्पकमाला के प्रति अत्यन्त अनुरागी था । एक दिन राजा भरिकेसरी अमरगुरु को साथ लेकर रानी चम्पकमाला के पास गया। अमरगुरु ने चर्चा छेड़ी-"महारानीजी ! कला के सम्बन्ध में कुछ कहिए।"
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