________________
१३८
आनन्द प्रवचन : भाग ११
. इसके विपरीत सम्यग्दृष्टि आत्मा इस विराट विश्व को सत्य तथा यहाँ के पदार्थों को शाश्वत नहीं मानता । वह यहाँ के सभी पौद्गलिक पदार्थों को क्षणभंगुर एवं नाशवान समझता है । वह न तो धन और अभीष्ट जन के संयोग से हर्षावेश में आकर फूलता है और न ही इनके वियोग से व्यथित होकर तड़फता है । धन-जन के विनाश को वह अपना विनाश कदापि नहीं समझता। शुभ और अशुभ भावों-यानी पुण्य और पाप के घेरे से ऊपर उठकर वह शुद्धभाव (धर्म) की उपासना करता है । शुद्धोपयोग की साधना ही उसके जीवन में मुख्य होती है । वह हर्ष और विषाद के प्रसंगों पर हर्ष-विषाद का अनुभव नहीं करता। वह अपने आत्मभावों में मस्त होकर समता की पगडंडी पर चलता है। इसी कारण उसके जीवन में सुख, सन्तोष और शान्ति की लहर व्याप्त होती है।
सम्यग्दृष्टि कदाचित् संसार में भटक भी जाये फिर भी पुनः अपनी असली स्थिति को प्राप्त कर लेता है। एक बार गिरकर भी वह सदा के लिए नहीं गिर जाता वह पुनः उठ जाता है । जैन सिद्धान्त कहता है एक बार सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाने पर उसका एक दिन इस संसार के जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होना अवश्यम्भावी है।
परन्तु इस प्रकार की सम्यग्दृष्टि प्राप्त होना संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है। आज अधिकांश लोग धन वैभव एवं सांसारिक नाशवान पदार्थों को प्राप्त करने में अहर्निश जुटे रहते हैं, उन्हें धन, सांसारिक सुखोपभोग सामग्री तथा सुख-सुविधायें दुर्लभ लग रही हैं, जबकि सम्यग्दृष्टि इन्हें बिलकुल तुच्छ समझता है । मिथ्यात्वी लोग जब गजसुकुमार मुनि, स्कन्दक मुनि आदि की कष्ट-कथा सुनते हैं तब या तो यों कहते हैं कि यह तो देवी चमत्कार था, या कहते हैं—ईश्वर की लीला थी। परन्तु इनकी घटना के पीछे न तो कोई देवी चमत्कार था, न ही ईश्वर की लीला थी । यह तो सम्यग्दृष्टि आत्मा का स्वयं का पुरुषार्थ था। सम्यग्दृष्टि को नहीं पाये हुए व्यक्ति सम्यग्दृष्टि के चमत्कार देखकर यों कहने लगते हैं-ऐसी कठिन दुर्लभ सम्यग्दृष्टि का प्राप्त करना हमारे वश की बात नहीं है । वे साहस और धैर्य खोकर अपनी आत्मशक्ति की अनभिज्ञता प्रकट करते हैं । वास्तव में सम्यग्दृष्टि प्राप्त होना कठिन और दुर्लभ है, परन्तु जिज्ञासा, श्रद्धा और पुरुषार्थ निष्ठा हो तो ऐसी दुर्लभ वस्तु भी मनुष्य प्राप्त कर लेता है । परन्तु सुविधावादी लोग इस सम्यग्दृष्टि (बोधि) को कठिन और विषयभोगों में अरुचि पैदा करने वाली समझते हैं, इस कारण इसे प्राप्त करने में उनकी दिलचस्पी नहीं होती। ... इन सब कारण-कलापों को देखते हुए, निःसन्देह कहना पड़ेगा कि सम्यग्दृष्टिरूप बोधि का लाभ अन्य सब लाभों की अपेक्षा उत्कृष्ट है। संसार की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि सम्यग्दृष्टि का लाभ है, जो अत्यन्त दुर्लभ भी है।
बन्धुओ! बोधिलाभ के दो अर्थों पर विवेचन करना अभी अवशिष्ट है । प्रस्तुत तीन अथों के विवेचन से आप समझ गये होंगे कि बोधिलाभ कितना दुर्लभ और परमलाभ है ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org