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________________ बोधिलाभ से बढ़कर कोई लाभ नहीं-१ १३३ लिया । उनका विचार अपने भाइयों पर शासन चलाने का नहीं था, किन्तु अपने प्रधान के कहने से और आयुधशाला में चक्ररत्न के प्रवेश न करने से भरत को विवश होकर अपने भाइयों पर भी शासन करने का विचार करना पड़ा । तदनुसार भरत ने पहले अपने ६८ भाइयों के पास अपने शासन की अधीनता स्वीकार करने के लिए सन्देश भेजा। संदेश मिलते ही १८ भाई सोचने लगे-'राज्य हमें पिताजी ने दिया है। भरत हमें अपने शासन के अधीन बनाना चाहता है । भरत का शासन स्वीकार करना उचित है या युद्ध करना उचित है ? इस प्रकार की अनिश्चयात्मक स्थिति में हम पिताजी (भगवान्) के पास चलें और उनसे निर्णय करा लें। अगर वे युद्ध करने की सलाह देंगे तो वैसा किया जायेगा । अगर वे कहें कि भरत तुम्हारा बड़ा भाई है, समग्र देश को एक सूत्र में बांधने के लिए ही वह तुम पर शासन चलाना चाहता है तो हमें भरत की शासनाधीनता स्वीकार करने में भी कोई आपत्ति न होगी।' ऐसा सोचकर ६८ भाई मिलकर भगवान् ऋषभदेव के पास पहुँचे । उन्हें वन्दना-नमस्कार करने के पश्चात् वे जब उनके सान्निध्य में बैठे तो भगवान् ने उनकी सारी परिस्थिति जानकर जो उपदेश दिया था, वह बहुत ही संक्षेप में सूत्रकृतांग सूत्र में तथा भागवत पुराण में वर्णित है । सूत्रकृतांग सूत्र में भगवान् ऋषभदेव के उद्गार इस प्रकार अंकित हैं संबुज्मह, किं न बुज्झह, संबोही खलु पेच्च दुल्लहा । णो हुवणमंति राइओ, नो सुलभं पुणरावि जीवियं ॥ इसका भावार्थ यह है-“हे पुत्रो ! सम्बोध प्राप्त करो, समझो, बोध क्यों नहीं प्राप्त करते । परलोक में सम्बोधि-प्राप्त करना निश्चय ही दुर्लभ है । जो समय व्यतीत हो चुका है, वह पुनः लौटकर नहीं आता। मनुष्य-जीवन बार-बार सुलभ नहीं है।" भगवान् ऋषभदेव के कथन का तात्पर्य यह था कि तुम यह समझो कि तुम्हें भौतिक राज्य चाहिए या आध्यात्मिक राज्य ? भौतिक राज्य मैंने तुम्हें सौंपा था, परन्तु वह पूर्ण स्वाधीन राज्य नहीं है, इसी कारण भरत तुम्हें अपने शासन के अधीन करना चाहता है । अगर तुम आध्यात्मिक राज्य (आत्मिक स्वतंत्रता) प्राप्त कर लो तो वह पूर्ण स्वाधीन होगा, उस पर किसी का शासन नहीं चल सकेगा, वह पूर्ण स्वतंत्र होगा । पूर्ण स्वाधीनता वाले आध्यात्मिक राज्य को प्राप्त करने का दृढ़ विचार ही बोधि प्राप्त करना है जो मुक्ति के राज्य में मनुष्य को पहुँचा देता है। अतः मेरी तुमसे यही सलाह है कि उस भौतिक राज्य को छोड़कर आध्यात्मिक राज्य को प्राप्त करने का दृढ़ बोध समझ लो, जिससे उस राज्य को प्राप्त करने पर दूसरा कोई तुम पर शासन न कर सके । यदि तुम यह कहो कि इस जन्म में तो इसी भौतिक राज्य को ही प्राप्त कर लें, अगले जन्म में आध्यात्मिक राज्य पाने की बोधि प्राप्त कर लेंगे, यह बहुत ही दुर्लभ है। कोई निश्चित नहीं है कि तुम्हें पुनः मनुष्य जन्म ही मिले, ऐसा बोधि पाने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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