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प्रेमराग मे बढ़कर कोई बन्धन नहीं ११६ गृही नगरी में प्रभु महावीर का पदार्पण सुनकर उस ओर विहार किया। रास्ते में गोशालक मिला। उसके साथ आर्द्र कमुनि की चर्चा हुई । उसमें गोशालक को उन्होंने निरुत्तर कर दिया। आगे बढ़े तो एक हाथी आर्द्र कमुनि को देखकर साँकल तुड़ाकर भागा। लोगों में भगदड़ मच गई । अन्त में हाथी आद्रकमुनि के चरणों में सूड से नमस्कार करके जंगल में चला गया। यह चमत्कार देखकर सभी लोगों में मुनि की प्रसिद्धि होने लगी। राजा श्रेणिक तथा अभयकुमार मंत्री आदि राजदरबारियों सहित मुनि के वन्दनार्थ आये । वे नमस्कार करके मुनि से पूछने लगे-"मुनिवर ! हाथी बन्धन से कैसे मुक्त हुआ ?"
___मुनि ने अपने पूर्वानुभव के आधार पर कहा-हाथी को जंजीर तोड़नी दुष्कर नहीं लगी, लेकिन मुझे सूत के बारह तार तोड़ने बहुत दुष्कर लगे।"
इस पर राजा ने पूछा-"यह कैसे ?" मुनि ने अथ से इति तक अपना सारा वृत्तान्त कहा जिसे सुनकर राजा और अभयकुमार दोनों को बहुत ही प्रसन्नता हुई। आद्रक मुनि वहाँ से भगवान महावीर के पास पहुँचे । उन्हें वन्दना नमस्कार करके उनकी सेवा में रहकर उग्र तपस्या की और कर्मक्षय करके रागद्वषमुक्त होकर एक दिन वे मोक्ष पहुँचे।
यह है प्रेमराग के बन्धन में पड़ने और उससे मुक्त होने का ज्वलन्त उदाहरण ! इसीलिए बंधन दो प्रकार का बताया गया है
पडिक्कमामि दोहिं बंधणेहि-रागबंधहिं दोसबंधणेहिं । -भगवन् ! दो प्रकार के बन्धनों से प्रतिक्रमण करता हूँ-राग के बन्धन से और द्वष के बन्धनों से।
प्रेमराग कहें या स्नेहराग दोनों के बन्धनों की तासीर एक सरीखी होती है।
योगी का प्रेमरागविहीन हृदय जहाँ अपने अधीन होता है, वहाँ वह रागादि शत्रुओं द्वारा आक्रान्त होने पर पराधीन हो जाता है।
वस्तुतः देखा जाये तो आसक्ति, मूढ़स्नेह, मोह, मूर्छा इत्यादि के कारण ही प्रेमराग गाढ़बन्धनकारक बन जाता है । इससे बड़े-बड़े योगी लोग भी पराधीन और दुःखी बन जाते हैं, अपनी वर्षों की साधना को चौपट कर देते हैं। - कई लोग यह मानते हैं कि गृहस्थ में रहने से प्रमराग के बन्धन बहुत दृढ़ हो जाते हैं, इसलिए साधु बन जाना या गृहत्याग कर देना चाहिए, ताकि ये बन्धन नष्ट हो जाये, परन्तु यह भ्रम है । साधु बन जाने मात्र से या वेष परिवर्तन कर डालने अथवा गृहत्याग कर देने मात्र से ही प्रेमराग के बन्धन कम हो जायेंगे, ऐसी बात नहीं है । अगर व्यक्ति गृहत्याग के साथ-साथ राग, स्नेह, आसक्ति, मोह-ममता आदि का त्याग कर लेता है या उसने गृहपरित्याग के गम्भीर अर्थ को हृदयंगम कर लिया है,
१. आवश्यकसूत्र, श्रमणसूत्रपाठ ।
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