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आनन्द प्रवचन : भाग ११
। अब समस्या यह थी कि दूध को कौन पीये? माता-पिता बोले-“कहीं लड़का न जीया तो एक जान और जायेगी । यदि हम रहे तो पुत्र तो और भी हो जायेगा।"
पत्नी बोली-"इस बार जीवित हो जाएंगे तो क्या है, फिर कभी तो मृत्यु मायेगी ही। इनके न रहने पर मैं अपने मायके में सुख से जिन्दगी काट लूंगी।
___ इस तरह सभी रिश्तेदार बगलें झाँकने लगे। पड़ोसी तो पहले से ही लौ दो ग्यारह हो गये थे। आखिर महात्मा ने कहा-“अच्छा, तो फिर मैं ही इस दूध को पी लेता हूँ।" सभी प्रसन्न होकर कहने लगे-"हाँ, महाराज ! आप धन्य हैं। साधुसन्तों का जीवन तो परोपकार के लिये होता ही है।"
- महात्मा ने दूध पी लिया और युवक को झकझोरते हुए बोले-"उठो वत्स ! अब तो तुम्हें पूरा ज्ञान हो गया है कि कौन तुम्हारे लिये प्राण देता है ।" : ::
के युवक फौरन उठ गया और महात्माजी के चरणों में गिरकर बोला--- "गुरुदेव ! मेरी भ्रान्ति दूर हो गई है।"
घरबालों के बहुत रोकने पर भी वह महात्मा के साथ चला गया और सांसारिक मोह (प्रेमराग) का त्याग करके स्व-पर-कल्याण के पुनीत पथ पर अग्रसर हो गया । -
- यह है, कौटुम्बिक जनों के प्रति प्रेमराग का ज्वलन्त उदाहरण ! -
पद्मपुराण में स्पष्ट कहा है.. पुत्रदारो कुटुम्बेषु, सक्ता सीदन्ति जन्तवः।
:. - सरः पंकार्णवे मग्नाः, जीर्णा वनगजा इव ॥
-तालाब के कीचड़ में फंसे हुए बूढ़े जंगली हाथियों की तरह पुत्र, स्त्री, कुटुम्ब आदि में आसक्त प्राणी दुःखी हो रहे हैं।
प्रेमराग का दायरा बहुत व्यापक-प्रेमराग का दायरा केवल मनुष्य या सचेतन प्राणी तक ही सीमित नहीं है, वह जड़ पदार्थों के प्रति भी होता है, यहाँ तक कि जो पदार्थ विद्यमान नहीं हैं उनके प्रति भी मनुष्य का आसक्तिमय प्रेमराग हो जाता है । और आसक्ति ही अनर्थ का मूल है । जहाँ तक आसक्ति का त्याग नहीं होता, वहाँ तक काम, क्रोध, नामना, कामना, वासना आदि से पिण्ड झूटना कठिन है । चन्दचरित्र में रागान्धता की विशेषता इस प्रकार बताई गई है
:- पशु-मानव-देवाश्चाऽनुरज्यन्ते सुरागके ।
तथवाऽमी बिशेषेण मृगस्त्रीसर्पभूभुजः ॥' -पशु, मनुष्य और देवता, ये सभी राग में अनुरक्त होते हैं, लेकिन इनमें विशेष रूप से मृग, नारी, सर्प और राजाओं का स्नेह (प्रम) राग माना गया है।
प्रेमराग : परम बन्धन क्यों ? - यह हुआ प्रेमराग के स्वरूप का विभिन्न पहलुओं से वर्णन ! अब मूल प्रश्न
१. चन्दचरित्र, पृ० ७२
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