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प्रेमराग से बढ़कर कोई बन्धन नहीं ११३ पति की आयु बढ़ जायेगी। बस, मुझे तो अपने पति की आयु बढ़वानी थी, सो बढ़वा ली। चलो, हटो यहां से।"
यों झिड़कते हुए उसे द्वार खोलकर बाहर निकाल दिया। अब तो उसके पति का विश्वास उस पर और भी बढ़ गया कि यह तो एक महासती है, जो मेरे हित के लिये न जाने क्या-क्या करती है।
वास्तव में राग मधुमिश्रित जहर है, जबकि द्वेष है-खालिस जहर । जहाँ राग होता है, वहाँ द्वष अवश्य छिपा होता है। उत्तराध्ययनसूत्र में राग और द्वेष दोनों को कर्मबीज और पाप तथा पापकर्म में प्रवृत्ति कराने वाले बताया है। मरणसमाधि प्रकीर्णक में बताया गया है कि “संसार में यदि राग-द्वेष न हों, तो कोई भी दुःखी न हो, और न कोई सुख पाकर ही विस्मित हो, बल्कि सभी मुक्त हो जाएं।" सूत्रकृतांगसूत्र में भी बताया गया है कि "अज्ञानी जीव राग-द्वेष के आश्रित होकर विविध पाप किया करते हैं।"
परिवार के सभी लोग प्रेमरागवश–परिवार के लोग भी प्रायः मिथ्याप्रमवश होकर संक्लेश पाते रहते हैं। एक उदाहरण लीजिये
___एक नवयुवक था। वह एक महात्मा के सत्संग में जाया करता था। महात्मा ने एक दिन उससे कहा-"वत्स ! आत्मकल्याण ही मनुष्य-जीवन का सच्चा लक्ष्य है । इसे ही पूर्ण करना चाहिये ।" यह सुनकर युवक ने कहा-''महाराज ! वैराग्य धारण करने पर मेरे माता-पिता कैसे जीवित रहेंगे ? साथ ही मेरी युवा पत्नी मुझ पर प्राण देती है, वह मेरे वियोग में मर जाएगी।" ।
महात्मा बोले-"कोई नहीं मरेगा। यह सब दिखावटी प्रेम है । तू नहीं मानता हो तो परीक्षा कर ले।"
युवक राजी हो गया तो महात्मा ने प्राणायाम करना सिखाया और आदेश दिया कि बीमार बनकर सांस रोक लेना।
युवक ने घर जाकर वही किया। बड़े-बड़े वैद्यों की चिकित्सा हुई, परन्तु दूसरे दिन भी उसने सांस रोक ली। घर वाले उसे मरा समझ हो-हल्ला मचाने और रोने-पीटने लगे। पड़ोस के बहुत-से लोग इकट्ठे हो गये। तभी वहाँ महात्मा भी जा पहुँचे। युवक को देखकर उसकी गुणगरिमा का बखान करते हुए बोले-"हम इस लड़के को जीवित कर देंगे, पर तुम्हें कुछ त्याग करना पड़ेगा।"
घर वाले बोले-"आप हमारा सारा धन, घरबार, यहाँ तक कि प्राण भी ले लें, परन्तु इसे जीवित कर दें।"
महात्मा बोले-"एक कटोरा दूध लाओ।" तुरन्त एक कटोरा दूध आ गया। फिर महात्मा ने उसमें एक चुटकी राख डालकर कुछ मन्त्र-सा पढ़ा और बोले-“लो, यह दूध पी लो । जो इस दूध को पीयेगा, वह मर जायेगा और यह लड़का जीवित हो जायेगा।"
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