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________________ ६६. प्रेमराग से बढ़कर कोई बन्धन नहीं-१ प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ! आज मैं आपके समक्ष एक चिरन्तन सत्य का उद्घाटन करना चाहता हूँ, जिसका मुमुक्षजीवन में प्रतिक्षण ध्यान रखना आवश्यक है । गौतम-कूलक का यह वेपनंवाँ जीवनसूत्र है, जिसमें इस सत्य का प्रतिपादन महर्षि गौतम ने किया है न पेमरागा परमत्थि बंधो। -प्रेम-राग से बढ़कर कोई बन्धन संसार में नहीं है। प्रेमराग क्या है ? बन्ध क्या और कौन-सा है ? तथा संसार के अन्य बन्धनों के मुकाबले में यह बन्धन क्यों अधिक तीव्र है ? इन सब मुद्दों पर चिन्तन किये बिना इस जीवनसूत्र का रहस्य समझ में नहीं आ सकता। अतः मैं क्रमशः इन सब मुद्दों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करूंगा। प्रेमराग : क्या, क्यों, कैसे ? प्रेम-राग में 'प्रेम' शब्द के साथ राग जुड़ा हुआ है । आप जानते हैं कि निखालिस प्रेम में किसी प्रकार का बन्धन नहीं होता । आजकल प्रेम शब्द भी बहुत विकृत अर्थ में प्रयुक्त होता है । दाम्पत्य प्रेम, प्रणयराग अथवा मोह या आसक्ति को भी आजकल प्रेम कहने लगे हैं । उर्दू में जिसे 'इश्क' कहते हैं, या मुहब्बत भी कहते हैं। ये दोनों ही विकृत प्रेम हैं । इसीलिए जैन धर्मशास्त्रों में शुद्ध प्रम शब्द का प्रयोग न करके वात्सल्य या मैत्री शब्द का प्रयोग किया है। वात्सल्य को सम्यक्त्व का एक अंग बताया गया है और मैत्री को चार भावनाओं में स्थान दिया है। यही कारण है कि जैनशास्त्रों में जहाँ भी प्रेम, या 'पेज्ज' शब्द का प्रयोग किया गया है, वह राग, अप्रशस्त राग या मोह, स्नेहराग अथवा आसक्ति के अर्थ में किया गया है। यहाँ भी प्रेम शब्द का अर्थ है-मोह, स्नेह, आसक्ति, इश्क, मोहब्बत या वासनामय प्रम। प्रम के साथ राग शब्द जुड़ जाने से और भी स्पष्ट हो गया कि यह प्रेमरूप राग है, शुद्ध प्रेम नहीं । राग शब्द का अर्थ है-संयमहीन पौद्गलिक सुखों की अभिलाषा अथवा वैषयिक सुख की प्रतीति के पीछे रहने वाला मानसिक वलेश।' ..१. (क) असंयममयसुखाभिप्रायो रागः । (ख) सुखानुशयी रागः । -जैन सिद्धान्त दीपिका ६/१२ -पातंजल योगदर्शन २/७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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