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प्राणिहिंसा से बढ़कर कोई अकार्य नहीं ६५ इसी प्रकार युद्ध में शासक की ओर से अनेक लोग लड़ते हैं, शत्र पक्ष की सेना के लोगों को मारते हैं, लेकिन युद्ध के फलस्वरूप हार या जीत शासक को मिलती है। यह है—अनेक द्वारा हिंसा किये जाने पर एक के फलभागी बनने का उदाहरण !
ये और इस प्रकार के अनेक विकल्प हिंसा के होते हैं । आत्मकल्याणकामी व्यक्ति को इस प्रकार की सभी हिंसाओं से बचना चाहिए।
प्राणिहिंसा के विविध प्रकार प्राणिहिंसा की परिभाषा में बताया गया था, १० प्रकार के प्राणों में से किसी भी प्राण की हिंसा-विघात या क्षति प्राणातिपात है। परन्तु इन दस प्राणों की क्षति भी मानव किस-किस रूप में करता है ? यह जान लेना बहुत ही आवश्यक है। 'इरिया-वहिया' के पाठ में अभिहया आदि १० भेदों का जो क्रम बताया गया है, उसी क्रम से मैं आपके समक्ष चिन्तन प्रस्तुत कर रहा हूँ
अभिहया–सामने से आते हुए प्राणी को धक्का देना, उससे टकराना। वत्तिया—उस पर धूल ढक देना अथवा उसकी आँखों में धूल झौंक देना। लेसिया–परस्पर एक दूसरे से चिपका देना, बेमेल गठबन्धन कर देना । संघाइया—एक पर एक ढेर कर देना, बेतरतीब से इकट्ठे कर देना। संघट्टिया-कठोरता से, द्वेषवश छूना, अथवा मर्मस्पर्श करना। परियाविया–परितापना देना-दूसरे को पीड़ा देना । किलामिया-दूसरे को थका देना, हैरान कर देना। उद्दविया-भयभीत कर देना, आतंकित कर देना, उपद्रव खड़ा कर देना।
ठाणाओ ठाणं संकामिया-हैरान करने की दृष्टि से एक जगह से दूसरी जगह रखना, जमे हुए स्थान को उखाड़कर दूसरी जगह रख देना, बार-बार स्थान परिवर्तन करने के लिए बाध्य करना।
जीवियाओ ववरोविआ-जीवन से रहित कर देना अथवा जीविका से वंचित कर देना।
इसी प्रकार अहिंसाणुव्रत के ५ अतिचार हैं, वे भी हिंसा के ही प्रकार हैंबंधे-ऐसे गाढ़ बंधन से प्राणी को बाँधना कि वह खुल न सके । वहे-जैसे—मारना-पीटना, इस प्रकार से मारना कि मर्मस्पर्शी चोट लगे।
छविच्छेए-द्वषरोषवश चमड़ी उधेड़ लेना, भयंकर डाम लगा देना, जिससे घाव हो जाए।
अइमारे-मनुष्य अथवा पशु पर इतना वजन लाद देना कि सहन न हो सके।
१ आवश्यक सूत्र, ईर्यापथिक प्रतिक्रमण सूत्र
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