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________________ ४ आनन्द प्रवचन : भाग ११ कभी-कभी एक व्यक्ति हिंसा करता है, किन्तु उस हिंसा के फलभागी बहुत-से होते हैं, अथवा इसके विपरीत कभी-कभी बहुत-से लोग मिलकर सामूहिक रूप से हिंसा करते हैं, लेकिन उस हिंसा का फलभागी एक ही व्यक्ति होता है।' ___इन दोनों विकल्पों के भी उदाहरण लीजिए-वाल्मीकि रामायण के रचयिता वाल्मीकि ऋषि बनने से पहले सारे परिवार की ओर से स्वयं अकेले ही लूटपाट, हत्याकाण्ड आदि करते थे। इस हिंसाकाण्ड से जो कुछ भी प्राप्त होता उसे वाल्मीकि घर ले जाकर सबको दे देते थे। वाल्मीकि यही समझते थे कि जब परिवार के सभी मेरे हत्याकाण्ड से प्राप्त समान का उपभोग करते हैं तो इस हत्याकाण्ड के फल में भी सबका हिस्सा है। वास्तव में सिद्धान्त की दृष्टि से था भी ऐसा ही। वाल्मीकि की आँखें तो तब खुलीं, जब नारदजी ने उनसे पूछा कि “यह जो तुम हिंसाकाण्ड करके सामग्री ले जाते हो, उसका फल किसको भोगना पड़ेगा ?"वाल्मीकि बोले-"मेरे हिंसाकाण्ड से प्राप्त सामग्री का उपभोग तो मेरे सारे परिवार वाले करते हैं, फल भी सबको भोगना पड़ेगा ?" नारदजी-“परिवार वालों से तुमने पूछा है या यों ही अपने मन से कह रहे हो? मेरे खयाल से परिवार वाले तुम्हारे इस हिंसाकाण्ड के फलभागी नहीं होंगे।" वाल्मीकि बोले-"इसमें क्या पूछना है ? फिर भी आप कहते हो तो मैं आपको पेड़ से बांधकर फिर जाकर परिवार वालों से पूछ आऊँगा।" नारदजी''जैसी तुम्हारी इच्छा !" वाल्मीकि ने नारदजी को एक पेड़ से कसकर बाँध दिया और घर की ओर दौड़े। घर जाकर अपनी माँ से पूछा- "मैं जो हिंसा, लूटमार आदि करके सामग्री लाता हूँ । उसका उपभोग तो आप सब करते हैं, तब उस हिंसा आदि के फल में भी हिस्सेदार सब होंगे न ?" माँ ने कहा- "हम क्यों उस बुरे कर्म के हिस्सेदार होंगे। हमने तुमसे कब कहा था कि तू हिंसादि करके ला।" इसके बाद उसने क्रमशः पिता, पत्नी, भाई, भाभी, पुत्र-पुत्री आदि सबसे वही प्रश्न किया, तुरन्त सबका उत्तर यही रहा-"हम तुम्हारे हिंसादि पाप कर्म के हिस्सेदार नहीं हैं। इस प्रकार पापकर्म के जिम्मेदार तुम अकेले हो।" यह सुनकर वाल्मीकि की आँखें खुलीं-“ओह ! मैं कितना भ्रम में था।" आखिर वाल्मीकि ने वापस नारदजी के पास आकर उन्हें बन्धनमुक्त किया, चरणों में पड़े, माफी मांगी और उनसे अपने उद्धार का-राम नाम मन्त्र लिया । तब से उन्होंने उस हिंसादि पापकर्म को सर्वथा छोड़ दिया। यह है—प्रथम विकल्प का उदाहरण, जिसमें हिंसादि करता एक है, किन्तु उसके फलभागी अनेक होते हैं। १ एकः करोति हिंसा भवति फलभागिनो बहवः । बहवो विदधति हिंसां हिंसाफलभुग भवत्येक: ॥५५॥ 'पुरुषार्थ सिद्ध युपाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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