SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ आनन्द प्रवचन : भाग ११ बहुत ही सहृदय, नामी और परोपकारी है। उससे पास एक दिन ऐसा रोगी आया, जिसका रोग दुःसाध्य था । डाक्टर ने उसके स्वास्थ्य की जाँच करके कहा--"इसका आपरेशन होगा। आपरेशन बड़ा जोखिमी है।" रोगी और उसके घर वाले आपरेशन कराने के लिए सहमत हो गये । डाक्टर ने विधिवत् आपरेशन करना शुरू किया। पहले तो आपरेशन ठीक चला। किन्तु सावधानी से आपरेशन करते हुए भी अकस्मात रोगी की एक नस कट गई, इससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। डाक्टर ने रोगी को जान-बूझकर मारा नहीं, उसके हृदय में रोगी की मृत्यु के लिए बहुत पश्चात्ताप है । रोगी के रिश्तेदारों को उसने अश्रु पूर्ण आँखों से यह समाचार सुनाया, इससे डाक्टर की प्रेक्टिस को भी थोड़ा धक्का लगा। मगर डाक्टर ने रोगी की हिंसा की नहीं है, उसकी हिंसा हो गई है। ___ अब एक और दृष्टान्त, इससे ठीक विपरीत समझ लीजिए। एक ऐसा डॉक्टर है, जिसे मालूम हो गया कि रोगी के पास काफी धन है. साथ में लाया है, नौकर के सिवाय इसका कोई रिश्तेदार साथ में आया नहीं है । डॉक्टर ने रोगी को ऑपरेशन की सलाह दी । रोगी सहमत हो गया। डॉक्टर ने रोगी का ऑपरेशन करते-करते ही एक नस जान-बूझकर काट दी, जिससे रोगी की तत्काल मृत्यु हो गई। लोभी डॉक्टर ने रोगी की वह थैली तुरंत अपने कब्जे में कर ली और झूठे आँसू बहाते हुए नौकर को रोगी की मृत्यु की सूचना दी। वह बेचारा क्या कर सकता था? यहाँ डॉक्टर ने रोगी की हिंसा की है, हुई नहीं है। ___ अब एक तीसरा दृष्टान्त लीजिए, एक लोभी डॉक्टर का। उसने देखा कि रोगी अपने साथ बहुत पूंजी लाया है । रोगी से उसने कहा कि तुम्हारा रोग दुःसाध्य है, इलाज कर रहा हूँ, भगवान् करेगा तो ठीक हो जाएगा। इलाज करते-करते डॉक्टर के मन में लोभ जागा । एक दिन उसने रोगी की दवा में जहर की पुड़िया घोलकर कहा-“लो यह दवा पी जाओ, इससे तुम्हारा रोग समूल नष्ट हो जाएगा।" डॉक्टर पर विश्वास करके रोगी वह दवा पी गया। भाग्यवश वह जहर ही उसके लिए • अमृत बन गया । कहावत है—'विषस्य विषमौषधम्' विष का निवारण करने हेतु विषमय औषध होता है। रोगी एकदम स्वस्थ हो गया। रोग नष्ट हुआ जानकर रोगी और उसके रिश्तेदारों से डॉक्टर को बहुत धन्यवाद और इनाम दिया। किन्तु डॉक्टर का मनोरथ सफल न हुआ। वह मन से और कर्म से रोगी की हत्या कर चुका था, यह तो रोगी का आयुष्यबल प्रबल था कि वह जिंदा रह गया। इस दृष्टान्त में डाक्टर ने जान-बूझकर हिंसा करने की चेष्टा की है । अत: हिंसा करने का अपराधी डाक्टर हो चुका। - आचार्य हरिभद्र सूरि ने द्रव्यहिंसा और भावहिंसा की चौभंगी इस प्रकार बताई है १-एक में द्रव्य से हिंसा होती है, भाव से नहीं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy