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________________ ७२ आनन्द प्रवचन : भाग १० लगाई; पर बोले कौन ? पिताजी ने सामने बोलने से इन्कार किया था, अतः वह चुप्पी लगाये बैठा रहा । आखिर बहुत आवाज लगाने पर भी लड़का न बोला तो पिता पड़ौसी के मकान की छत से उतरकर घर में घुसा तो लड़के को चुपचाप बैठे देख कहा - " अरे मूर्ख ! इतनी आवाजें दीं, पर तू बोला क्यों नहीं ?" लड़के ने कहा - " आपने ही तो कहा था - - 'बड़ों के सामने नहीं बोलना' ।" पिता बोला- “अरे मूर्ख ! सामने नहीं बोलना, इसका मतलब तो था कि जोर से नहीं बोलना, पाँच आदमी बैठे हों, उस समय बीच में न बोलकर, धीमे से कहने में कोई हर्ज नहीं है ।" उसने पिता की बात स्वीकार करते हुए कहा - " अब ऐसा ही करूँगा ।" एक दिन घर में आग लग गई। माता ने पिताजी को बुलाने हेतु लड़के को भेजा । पिताजी कहीं दूसरी जगह बैठे चार-पाँच आदमियों से बात कर रहे थे । यह देख लड़का दूर ही बैठ गया। दो घण्टे बाद जब वे सब चले गये, तो लड़के ने पिता के पास जाकर धीमे से कहा - " घर में आग लगी है, अतः माताजी ने जल्दी घर पर बुलाया है ।" नहीं ।" पिता - " कितनी देर हो गयी, आग लगे ?" पुत्र - " दो-तीन घण्टे हो गये ।" पिता - " मूर्ख ! तब फिर इतनी देर चुपचाप क्यों बैठा रहा ?" पुत्र - " आपने ही तो कहा था, पाँच आदमी बैठे हों, तब बीच में बोलना पिता ने मूर्ख लड़के की जड़बुद्धि पर सिर पीट लिया । वास्तव में मूर्ख बिना सोचे-समझे कोई बात कह देता है, जिसका परिणाम बहुत भयंकर या अहितकर होता है, जिसे वह सोच नहीं पाता, बाद में तो वह भी पछताता है, पर पहले नहीं सोचता । किसी ने ठीक कहा है- "A wise man reflects before he speaks, a fool speaks and then reflects on what he has uttered." "बुद्धिमान बोलने से पहले सोच लेता है, और मूर्ख बोल देता है, तब सोचता है, कि उसने क्या कह दिया ?" एक सेठ का पुत्र लक्ष्मीचन्द बहुत बुद्ध था, इसलिए लोग उसका व्यवहार देखकर उसे 'मूरखचन्द' कहने लगे । लक्ष्मीचन्द को यह नाम बहुत खटकता था । नाम बदलवाने के लिए उसने स्थान बदलने का निश्चय किया । तदनुसार उसने नयी पोशाक पहनी और सैकड़ों मील दूर जाने के लिए घर से रवाना हुआ । रेलगाड़ी में बैठा । एक स्टेशन पर पानी पीने के लिए मूरखचन्द गाड़ी से उतरा । नल के पास जाकर अंजलि से पानी पी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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