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________________ ६६ आनन्द प्रवचन : भाग १० तो इससे स्पष्ट होता है कि 'मन्त्र' शब्द सिर्फ एक विशेष अक्षर समूह का ही सूचक नहीं है, किन्तु मन्त्र का अन्य अर्थ है--विचार या गम्भीर चिन्तन । मन्त्रणा चल रही है-इस वाक्य का भी यही अर्थ है-कि गम्भीर विचार चर्चा हो रही है। यहाँ पर जब हम 'विद्याधर' शब्द से विद्वान अर्थ लेंगे तो 'मन्त्र' शब्द से 'मननशीलता' या विचारशीलता का अर्थ होना चाहिए और तब 'विज्जाहरा मन्तपरा हवंति'– इस पद का अर्थ होगा—विद्वान विचार-परायण होते हैं, पढ़े-लिखे या सुशिक्षित व्यक्ति को गम्भीर, चिन्तनशील या मननशील होना चाहिए। ऐसा नहीं कि कोई भी बात या प्रसंग आया और आनन-फानन में कुछ भी निर्णय ले लिया। उस पर विचार-चिन्तन किये बिना ही, उसके सभी पहलुओं पर मनन किये बिना ही निर्णय या फैसला कर बैठना मनुष्य की क्षुद्रता का परिचायक है, अपरिपक्वता का द्योतक है और उसे हम विद्वान या मन्त्री नहीं कह सकते जो बिना सोचे-विचारे ही कदम उठाये। बादशाह ने अपने नौजवान मन्त्रियों से पूछा-"जो मेरी दाढ़ी को नोच ले, उसे क्या सजा देनी चाहिए ?" तत्काल जवान वजीरों ने उत्तर दिया-"जो दुष्ट व्यक्ति आपकी दाढ़ी को हाथ लगाने की जुर्रत करे उसे तुरन्त मौत के घाट उतार देनी चाहिए या उसके हाथ काट देना चाहिए।" बादशाह ने बीरबल की तरफ देखा, बीरबल ने गंभीर होकर कहा- "हजूर ! उसे इनाम देना चाहिए।" सभी सभासद और मन्त्री चकित रह गये, बीरबल ने कैसा उल्टा जबाव दिया है । बादशाह ने इसका स्पष्टीकरण पूछा, तो बीरवल बोला-हजूर की दाढ़ी को हाथ लगाने की हिम्मत किसमें है ? हजूर का शहजादा (पोता) जो गोद में बैठता है वही सिर्फ आपकी दाढ़ी के बाल खींच सकता है, तो उसे मिठाई देना चाहिए कि नहीं? बीरबल की समझदारी पर सभी लोग चुप थे । वास्तव में उसने जो उत्तर दिया वह उसकी गम्भीर विचारशीलता का परिचायक है । जैसे-जोहरी, हीरे को सभी पहलुओं से परखकर उसकी कीमत आँकता है उसी प्रकार मनुष्य बात को सब पहलुओं से सोचकर ही वह फैसला करता है । हमारे यहाँ एक कहावत प्रचलित है--"बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय ।" इसी बात को एक कवि ने यों कहा है कर सोचे सो कूर है, सोच करे सो शूर । सोच किये मुख नूर है, कर सोचे मुख धूर ॥ जो व्यक्ति कार्य करके, बाद में सोच करता है, काम करके फिर पछताता है, वह मूर्ख है, उसके सिर पर संसार धूल डालता है, किन्तु जो कार्य करने से पहले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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