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विद्याधर होते मन्त्रपरायण
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विद्याधर और जादूगर में अन्तर कई लोग कहते हैं कि इन विद्याधरों और जादूगरों में क्या अन्तर रहा ? विद्याधर भी तो विद्या सिद्ध करके अपने जीवन में सुखभोग की क्रीड़ा करते हैं और जादूगर भी अपने जादू के खेल-तमाशे दिखाते हैं ?
इसके उत्तर में यह कहना है कि विद्याधर अपनी विद्याओं का प्रदर्शन नहीं करता, वह या तो अपनी उचित सुख-सुविधा के लिए विद्या का प्रयोग करता है, या फिर किसी लोकोपकार के कार्य के लिए विद्याप्रयोग करता है । व्यर्थ ही कौतुक दिखाना, लोगों से पैसे बटोरना या खेल-तमाशे दिखाकर प्रसिद्धि पाना विद्याधरों का लक्ष्य नहीं होता, न वे ऐसा करते ही हैं। फिर जादूगर के पास कोई विद्या सिद्ध की हुई नहीं होती, वह तो हाथ की सफाई तथा कुछ जादू के तरीके से खेल-तमाशे दिखाता है, जबकि विद्याधरों के पास अपनी सिद्ध की हुई मन्त्र-विद्या होती है, जिससे उन्हें हाथ की सफाई करने की जरूरत नहीं होती।
विद्याधर और पेशेवर मन्त्रवादी अब एक सवाल यह उठता है कि विद्याधर भी मन्त्रविद्या सिद्ध करके उसका प्रयोग करता है, और पेशेवर मन्त्रवादी भी मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र के प्रयोग करता है, फिर इन दोनों में क्या अन्तर रहा ?
। इन दोनों में यही अन्तर है कि विद्याधर का पेशा नहीं है कि वह जगह-जगह जाकर अपनी मन्त्रविद्या का प्रयोग दिखाये या किसी मन्त्र-तन्त्र का प्रयोग करके पैसा कमाये; जबकि मन्त्रवादी तो जगह-जगह जाकर अपने मन्त्रों का प्रयोग बताता है और लोगों को प्रभावित करके पैसा कमाता है, अथवा किसी-न-किसी काम के लिए मन्त्रतन्त्रादि का प्रयोग करने हेतु बुला लिया तो वह उससे भारी रकम ऐंठता है । विद्याधर यह धन्धा नहीं करता और न ही किसी से धनराशि ऐंठता है । हाँ, कभी किसी व्यक्ति के दुःख-निवारण के लिए लोकोपकार समझकर वह अपनी मन्त्रविद्या का प्रयोग करता है, तो फ्री करता है, एक पैसा भी नहीं लेता । बल्कि विद्याधर लोकहित के लिए या लोगों की सुख-सुविधा के लिए अपनी विद्या में नयी-नयी शोध करते हैं, नयी-नयी चीजें बनाते हैं, उसका खुद उपयोग करते हैं, दूसरों को भी उपयोग करने को देते हैं । विद्याधर जिन लोगों को अपनी विद्या सिखाते हैं या जिनके लिए विद्याप्रयोग करते हैं, उनसे कुछ न कुछ दुर्व्यसन-त्याग आदि भी कराते हैं; जबकि मन्त्रवादी न तो स्वयं त्याग करते हैं, न दूसरों से त्याग-नियम कराते हैं। विद्याधरों का सारा जीवन ही विद्याएँ सिद्ध करने और स्व-पर-सुख के लिए उनका प्रयोग करने में व्यतीत होता है।
विद्याधरों की मन्त्रपरायणता, क्या और कैसे ? ___ मैंने पहले भगवान ऋषभदेव के पौत्रों की जो कथा सुनाई, उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि विद्याधर एक कुल है, और उस कुल का कुलाचार है-मन्त्रों और
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