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आनन्द प्रवचन : भाग १०
विद्याओं की साधना के लिए अप्रमत्त होकर नियमित रूप से तत्पर रहना, सिद्धि प्राप्त न हो जाय, तब तक सत्य, ब्रह्मचर्य आदि यम-नियमों का पालन करना और अपनी सुख-सुविधाओं के लिए अथवा लोकोपकार के हेतु मन्त्रों का प्रयोग करना । यही विद्याधरों की मन्त्रपरायणता है । जो विद्याधरकुल में जन्म लेकर भी मन्त्रों और विद्याओं की सिद्धि नहीं करता, आलस्य और प्रमाद में पड़ा रहता है, या विद्यासिद्धि के दौरान यम-नियमों आदि का पालन नहीं करता अथवा इनमें असावधानी करता है, अथवा लोभ-लालच में पड़कर लोकोपकार की दृष्टि छोड़कर स्वार्थवश मन्त्रादि का प्रयोग करता है, अथवा मारण, उच्चाटन, विद्वेषण आदि के लिए मन्त्र प्रयोग करता है, वह विद्याधर कुलधर्म से भ्रष्ट हो जाता है, अथवा विद्याधर कुल को छोड़कर हीनकुल का बन जाता है ।
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fron यह है कि विद्याधर सही अर्थों में वह है, जो मन्त्रादि की साधना और प्रयोग में कभी असावधानी या प्रमाद नहीं करता । वास्तव में जो विद्याधर पुरानी विद्याओं की थ्योरी के आधार पर नयी-नयी विद्याओं और मन्त्रों का लोकहित या जनता की सुख-शान्ति के लिए आविष्कार और प्रयोग करता है, वह लोकहितकर्ता सच्चा विद्याधर है, उसे ही गौतम ऋषि मन्त्रपरायण कहते हैं । ऐसे विद्याधर का लोकहितार्थं मन्त्रपरायण जीवन होता है ।
आधुनिक विद्याधर और उनकी विद्याएँ
वर्तमान युग के वैज्ञानिकों को भी विद्याधर कहा जा सकता है । जैसे प्राचीन विद्याधरों ने उड़नखटोला, विमान आदि यन्त्रों का आविष्कार और प्रयोग किया था, वैसे ही वर्तमान युग के विद्याधरों - वैज्ञानिकों ने टेलीफोन, टेलीग्राम, टेलीपैथी, टेलीविजन, रेडियो, वायरलेस (बेतार का तार ), विद्युत और उससे चलने वाले नाना इंजिनों, यन्त्रों, रेलगाड़ी, मोटर, हवाईजहाज, स्टीमर, जल, थल और नभ पर नियन्त्रण करने वाले एक से एक बढ़कर वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार करके दुनिया को चमत्कृत कर दिया है । वर्तमान वैज्ञानिकों ने गणक मशीन ( कम्प्यूटर), मशीन का मानव, मशीन की गाय आदि बनाकर तथा चन्द्रादि की अन्तरिक्ष यात्रा करके तो विश्व को आश्चर्य में डाल दिया है । सचमुच, इन्हें आधुनिक विद्याधर कहा जा सकता है । इनकी विद्याएँ हैं—भौतिक विज्ञान, टेक्नोलॉजी, जीवविज्ञान, ( ज्योलॉजी), अन्तरिक्ष विज्ञान, भूगर्भ विद्या आदि । ये विद्याएँ थ्योरिटिकल और प्रेक्टिकल अर्थात् — मन्त्रात्मक एवं प्रयोगात्मक दोनों ही रूप में हैं । आधुनिक विद्याधरों के मन्त्र हैं - विविध वैज्ञानिक थ्योरियाँ, जिनको सिद्ध करने के लिए वे वर्षों तक अपनी प्रयोगशाला (लेबोरेटरी) में अनुसन्धान, अन्वेषण और एकाग्रचित्त होकर अभ्यास करते हैं । बड़े-बड़े वैज्ञानिक ( आधुनिक विद्याधर ) तो एक ही यन्त्र ( थ्योरी) के अन्वेषण और प्रयोग में वर्षों बिता देते हैं, वे अपना खाना-पीना तक भूल जाते हैं, तब तक वे विवाह नहीं करते, ब्रह्मचर्य से रहते हैं, अनेक बातों में संयम से रहते हैं ।
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