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विद्याधर होते मन्त्रपरायण ५५ इसलिए यह मन्त्र के प्रयोग करने वाले पर निर्भर है कि वह मन्त्र प्रयोग किस प्रयोजन से, किस दृष्टि से करता है ?
इसके अतिरिक्त अथर्ववेद में तथा कई तांत्रिक आदि कई अन्य मतों के शास्त्रों में मन्त्रों के निम्न प्रकार के निकृष्ट प्रयोग भी बताये गये हैं-मारण, मोहन, उच्चाटन, विद्वेषण, वशीकरण आदि । जैन मन्त्रविद्याओं में इन्हें उत्सर्गमार्ग में कहीं स्थान नहीं दिया गया है। जिसमें उच्चाटन, विद्वेषण या मारण के प्रयोग हिंसाजनक होने से कथमपि अभीष्ट नहीं है, जैन-गृहस्थ एवं साधु के लिए । हाँ, इनमें से शान्ति, पुष्टि तुष्टि के लिए, वशीकरण के लिए या क्वचित् सम्मोहन के लिए किया गया मन्त्र प्रयोग क्षम्य है, वह भी विशिष्ट परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर ही किया जा सकता है।
मन्त्रों की रचना के उद्देश्य के बारे में एकदम यथार्थ रूप से कुछ कहना मेरे लिए कठिन है। फिर भी इतना ही कहूँगा कि जैन मनीषियों ने जिन मन्त्रों की रचना की है, वे मन्त्र प्रायः लोकोपकार, लौकिक कामनाओं की पूर्ति एवं भौतिकआध्यात्मिक शक्तियाँ या उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए हैं।
___मन्त्रों का दुरुपयोग और सावधानी शक्ति आदि सम्प्रदायों में मन्त्र-तन्त्रों का दुरुपयोग हुआ, मारण, मोहन, विद्वषण, उच्चाटन आदि के लिए उनका प्रयोग खुलेआम हुआ। साथ ही मन्त्र-तन्त्रों की विधियों में पशुबलि एवं पंचमकार (मद्य, मीन, मांस, मुद्रा और मैथुन) का प्रयोग खुलेआम होने लगा । यह सब मन्त्र रचना के उद्देश्य के विपरीत मालूम होता है।
कई मन्त्रों की विधियाँ इतनी जटिल होती हैं कि यदि मन्त्रसाधक जरा-सी भी गलती कर बैठता है तो उसे लेने के देने पड़ जाते हैं। मन्त्राधिष्ठित देव कुपित होकर उसका अनिष्ट कर बैठते हैं। किन्तु जैन-मन्त्रों की विधियाँ इतनी जटिल नहीं हैं, न ही उनमें इस प्रकार का खतरा है। मन्त्रसाधक से कदाचित कोई गलती या असावधानीवश भूल हो जाती है तो उसके लिए मन्त्राधिष्ठित देव से क्षमायाचना करने पर उसकी क्षतिपूर्ति हो जाती है। जैनमन्त्रों या विद्याओं के देव सात्त्विक, क्षमाशील एवं दयालु होते हैं। हाँ, श्रद्धा, भक्ति, भावना आदि तो यहाँ सर्वत्र अपेक्षित हैं ही।
मन्त्रों का प्रयोगकर्ता : कैसा और कौन ? एक बात निश्चित है कि सामान्य मन्त्रसाधक हो या विद्याधर, सभी मन्त्रप्रयोक्ताओं के लिए सात्त्विक प्रयोजनवश ही मन्त्रप्रयोग अभीष्ट है, अन्यथा यदि तामसिक प्रयोजनवश मन्त्र का प्रयोग किया तो मन्त्रों से जो शक्तियाँ या उपलब्धियाँ प्राप्त की गयी हैं, वे टिक नहीं सकेंगी, वे विफल हो जाएँगी। उस मन्त्रसाधक के द्वारा इस प्रकार मन्त्रों का दुरुपयोग होने पर जो मन्त्र या विद्या उसने सिद्ध कर रखी है, वह भी निष्फल हो जायगी। उसके जीवन पर भी बहुत बड़ा खतरा उपस्थित
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