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आनन्द प्रवचन : भाग १०
वैसे मन्त्रों में अचिन्त्य शक्ति है, उनका प्रभाव अमोघ होता है, उनसे अनेक कष्टसाध्य कार्य आसान हो जाते हैं । मन्त्रों (जिनमें विद्या और मन्त्र दोनों ही सम्मिलित हैं) से अनेक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।
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संस्कृत गद्य साहित्य के मूर्धन्य ग्रन्थ कादम्बरी में बताया है'अचिन्त्योहि मणिमन्त्रौषध्यादीनां प्रभावः '
"मणि, मन्त्र और औषधि आदि का प्रभाव ही अचिन्त्य है ।" मन्त्रों के प्रकार और उद्देश्य
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आचार्य कुन्दकुन्द ने मूलाचार में दो प्रकार के मन्त्र बताये हैंसिद्ध पविदे मन्त्रे, विज्जा साधित सिद्धा
एक सिद्धमन्त्र होता है, दूसरा होता है - साधित मन्त्र । जो पठनमात्र से सिद्ध हो जाता है, उसे सिद्ध मन्त्र कहते हैं, जो विद्या साधित होने पर सिद्ध होती है, उसे साधितमन्त्र कहते हैं । यहाँ मन्त्र और विद्या का अन्तर भी आचार्यश्री ने स्पष्टतः सूचित कर दिया है ।
अब हम दूसरी दृष्टि से मन्त्रों को दो भागों में विभक्त करते हैं - एक लौकिक मन्त्र, दूसरा लोकोत्तर मन्त्र । अथवा यों भी दो भेद किये जा सकते हैं
(१) कामनायुक्त मन्त्र, और (२) निष्काम - निष्कांक्ष मन्त्र |
जो मन्त्र लौकिक कामनामूलक होते हैं, जिनका जाप करने से केवल इहलौकिक या पारलौकिक कामना पूर्ण होती है, धन प्राप्ति, सन्तान प्राप्ति, आकस्मिक संकट एवं भय का निवारण, रोग निवारण, बल एवं विजय की प्राप्ति आदि भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए जो मन्त्र होते हैं, वे कहलाते हैं, लौकिक मन्त्र । इसी प्रकार जिन विद्याओं से कुछ भौतिक सिद्धियां, या उपलब्धियाँ प्राप्त की जाती हैं, कुछ विशिष्ट भौतिक शक्तियाँ हासिल की जाती हैं, वे विद्याएँ भी लौकिक मन्त्र के अन्तर्गत हैं । परन्तु जिन मन्त्रों से केवल आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त की जाती हैं, मनोबल, मानसिक एकाग्रता, चित्त की स्थिरता, मनोविजय, इन्द्रीयवशीकरण, ध्यान में स्थिरता, मन-वचन काया की एकाग्रता और स्थिरता प्राप्त की जाती है, साथ ही स्मरणशक्ति, निर्णयशक्ति, निरीक्षण-परीक्षणशक्ति एवं स्फुरणाशक्ति सिर्फ आत्मविकास, अध्यात्मज्ञानप्राप्ति एवं शुद्ध साधना ( रत्नत्रय की ) करने के लिए प्राप्त की जाती है, वह मन्त्र लोकोत्तर या निष्काम मन्त्र हैं ।
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यद्यपि मन्त्रों के ये दो भेद हमने स्थूल रूप से समझने के लिए किये हैं, तथापि यदि कोई मन्त्रसाधक लोकोत्तर मन्त्रों [ नमस्कार मन्त्र, लोगस्स ( चतुर्विंशतिस्तव), शक्रस्तव ( नमोत्थणं) आदि ] का प्रयोग लौकिक कामनावश करता है, तो वह लोकोत्तर मन्त्र कहा जाने वाला मन्त्र भी लौकिक मन्त्र की कोटि में आ जायगा ।
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