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विद्याधर होते मन्त्रपरायण
पूर्वो की यह विशाल ज्ञान - राशि लुप्त हो गई है, इसलिए हम बहुत बड़ी मन्त्रविद्या की ज्ञान - राशि से वंचित हो गये हैं ।
इसके अतिरिक्त द्वादशांगी के दशवें अंग प्रश्नव्याकरण सूत्र में भी बहुत सी विद्याओं एवं मन्त्रों का वर्णन था, ऐसा श्री नंदीसूत्र में प्रश्नव्याकरणान्तर्गत विषयउल्लेख से ज्ञात होता है । वहाँ बताया गया है कि प्रश्नव्याकरण सूत्र में अंगुष्ठ प्रश्न आदि प्रश्नों, अप्रश्नों तथा प्रश्नाप्रश्नों की विद्या एवं विद्यातिशय ( मन्त्रविद्या) का वर्णन है । परन्तु वर्तमान में जो प्रश्नव्याकरण सूत्र उपलब्ध है, उसमें तो ५ आस्रवद्वार और ५ संवरद्वार का वर्णन है । इससे मालूम होता है—नंदीसूत्र और स्थानांगसूत्र में उल्लिखित प्रश्नव्याकरणसूत्र लुप्त हो गया है ।
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जो भी हो, यहाँ विद्या शब्द से जितने भी मन्त्र हैं, तथा उनसे सम्बन्धित यंत्र एवं तन्त्र हैं, उन सबका ग्रहण कर लेना चाहिए ।
श्वेताम्बर परम्परा के आचार्यों द्वारा जो प्रभावक आचार्यों का जीवन चरित्र लिखा गया है, उसमें कतिपय विद्यासिद्ध प्रभावक आचार्यों का भी वर्णन है; जो मन्त्रतन्त्रादि विद्याओं में निष्णात थे ।
दिगम्बर परम्परा के आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा लिखित प्रभावक चरित्र भी इसी कोटि का एक ग्रन्थ है, जिसमें मन्त्रविद्यानिपुण प्रभावक आचार्यों का वर्णन है । पुरातन पूर्वगत मन्त्रादि विद्या और उत्तरवर्ती मन्त्र - महोदधि आदि ग्रन्थों के बीच में कुछ प्राकृत भाषा निबद्ध ग्रन्थ भी पाये जाते हैं, जिनके नाम हैं - सिद्धपाहुड, जोणीपाहुड (योनिप्राभृत), निमित्तपाहुड, विज्जापाहुड आदि । आज इनमें से सिर्फ जोणीपाहुड (योनिप्राभृत) ग्रन्थ अंशतः प्राप्य है ।
भी हो, प्राचीन विद्याधर मन्त्र-तन्त्र - यन्त्रादि सभी विद्याओं का अध्ययन और प्रयोग करता था । इतना ही नहीं, बल्कि वह प्राचीन विद्याओं की थ्योरी ( सिद्धान्त ) के आधार पर नव-नवीन विद्याओं का आविष्कार और प्रयोग भी
करता था ।
मन्त्र : स्वरूप, शक्ति और प्रभाव
प्रश्न होता है, विद्या जब मन्त्रात्मक ही है, तो मन्त्र का क्या स्वरूप है ? उसका उद्देश्य क्या है ? उसका प्रयोग कौन और कैसे करता है ? तथा मन्त्रों का प्रभाव क्या है ? वैसे तो इन सब प्रश्नों का गहराई से समाधान मन्त्रशास्त्र का पारंगत विद्वान या ज्ञानी पुरुष ही कर सकते हैं । मेरा इस सम्बन्ध जो यत्किचित् अध्ययन और अनुभव है, उसी के आधार पर इन प्रश्नों का क्रमशः समाधान करने का प्रयत्न करूँगा ।
मन्त्र शब्द की व्युत्पत्ति कई प्रकार से होती है । 'निरुक्त' में - 'मन्त्रा मननात्'1 - मनन से संचारित होने वाली प्रक्रिया को मन्त्र कहा है । 'शतपथ ब्राह्मण' में 'वाग्वै मन्त्र: ' - परिष्कृत वाणी से उच्चरित व्यवस्थित शब्द - श्रृंखला को मन्त्र कहा
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