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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण-२
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एक दिन उसका पापकर्म उदय में आया। पाप करने में पागल बना हुआ दुष्टाधिप दुर्योधन मरने से पहले असह्य रोग से पीड़ित हुआ। वैद्य, हकीम, आदि के सब उपचार व्यर्थ हो गये । दीर्घकाल तक असह्य वेदना भोगकर हाय-हाय करते हुए दुर्योधन दण्डनायक का शरीर छूटा। मरकर वह २२ सागरोपमकालिक घोर नरक में तीव्र वेदना भोगने के लिए चला गया।
नरक का आयुष्य पूर्ण करके दण्डनायक का जीव मथुरा नगरी के श्रीदाम नामक राजा के यहाँ राजपुत्र के रूप में जन्मा । नाम रखा गया नन्दीवर्धन । उसके मूल कुसंस्कार अभी गये नहीं थे। युवावस्था में पदार्पण करते ही राजकुमार नन्दीवर्धन ने सोचा-अहा ! राज्य पाने में कितना सुख है ? किन्तु पिता के हाथ में जब तक राज्य रहेगा, तब तक मैं सुखी नहीं हो सकूँगा । पिता के जीवित रहते मेरे हाथ में राज्य आ नहीं सकता। पिता अभी तक न मालूम कितने वर्ष जीवित रहेंगे ? इसलिए किसी न किसी उपाय से पिता को समाप्त करने पर ही मैं सत्ताधीश बन कर आनन्द लूटूं।' ऐसी पूर्वकालिक राक्षसी भावना उसके हृदय में जागी । उसने मन ही मन पिता की हत्या कराने की योजना सोच ली और इसके लिए उसने चित्त नामक नाई को प्रचुर धन और मन्त्रीपद का लालच देकर तैयार कर लिया। परन्तु किसी के प्राण लेने का काम आसान न था। नाई में इतनी हिम्मत भी न थी, और प्रभु का भी डर था।
एक दिन उसने जैसे-तैसे उस्तरे की धार तेज की, राजा की हजामत बनातेबनाते ज्यों ही गहरा घाव करने का सोचा कि उसका हाथ रुक गया। राजा भी नाई का मनोभाव ताड़ गया।
राजा ने तुरन्त उससे पूछा- "सच-सच बता, चित्त ! क्या बात थी? सच बताएगा तो तेरा गुनाह माफ कर दूंगा।" उसने सारी बात आद्योपरान्त खोलकर कह दी, अपना अपराध मंजूर किया। राजा का आयुष्य बलवान था, इसलिए बच गया। परन्तु राजा ने तत्काल राजकुमार नन्दीवर्धन को गिरफ्तार करवाकर कैद में डलवा दिया तथा नगर में घोषणा करवा दी कि युवराज का आज नगर के मुख्य चौक में राज्याभिषेक करना है, इसके लिए सब प्रजाजन उपस्थित हों। एक ओर राज्याधिकारी एवं कर्मचारी मंच बनाने और सिंहासन रखने आदि की तैयारी कर रहे थे, दूसरी ओर राजा ने शीशे को कड़ाही में गर्म करवाकर तप्त रस तैयार करवाया। ठीक समय पर मुख्य चौक में सिंहासन पर बैठे युवराज के सिर पर खौलता हुआ शीशे का रस राजा ने अपने हाथ से उड़ेलकर राज्याभिषेक किया।
___ इस प्रकार नन्दीवर्धन को उसकी राक्षसी भावना के फलस्वरूप कुत्ते की मौत मार डाला। राजपुत्र को उसके पूर्वकृत भयंकर दुष्कर्मों का फल मिल गया। उपस्थित जनता देखकर सन्न रह गयी।
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