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आनन्द प्रवचन : भाग १०
" वही राजा अपने राज्य पर श्रेष्ठ शासन कर सकेगा, जो अपनी प्रजा पर उसी प्रकार शासन करता है, जिस प्रकार एक पिता अपने बच्चों पर करता है ।" शेरशाह सूरी इसी प्रकार का एक नीतिमान् राज्याधिप था । अच्छा शासक बनने के लिए क्या-क्या मूल्य चुकाने पड़ते हैं, यह शेरशाह जानता था; किन्तु शेरशाह का तरुण पुत्र इस बात से अनभिज्ञ था । वह तो राज्य को एक खेल और प्रजा को अपने लिए किसी भी प्रकार प्रयुक्त करने का अपना अधिकार समझता था ।
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एक दिन अपने शौर्य, साहस तथा बाहुबल के आधार पर भारत का शासक बनने वाले शेरशाह का उत्तराधिकारी हाथी पर बैठकर शहर में घूमने निकला । युवराज सहज ही प्राप्त वैभव के अहंकार में झूमता हुआ जा रहा था। वह अपनी वृत्तियों पर नियन्त्रण न रख सका । रास्ते में एक मोदी की दुकान पर उसकी दृष्टि पड़ी । मोदी की युवा पत्नी दुकान पर बैठी थी । उसका सौन्दर्य देखकर उसके असंस्कारी मन में विकार पैदा हुआ । पानदान में से दो पान के बीड़े उठाकर उसने उस सुन्दरी पर फेंके । बेचारी महिला सहमकर रह गई । गरीब घर की महिला पति के सहयोग एवं बच्चों के पालन के लिए दुकान पर बैठती थी । पर-पुरुष द्वारा अपने सतीत्व के अपमान से उसके हृदय को भी चोट पहुंची । उसके पति ने भी यह सब देखा, परन्तु प्रतिकूल परिस्थिति समझकर खून का घूंट पीकर रह गया । परन्तु उसका अन्त:करण न माना । उसने पड़ौसियों से परामर्श किया, जिन्हें इस घटना पर क्षोभ था । उन्होंने सलाह दी कि " कम से कम अपनी फरियाद तो बादशाह को सुना दो ।" मोदी शेरशाह के पास पहुँचा और अपनी फरियाद उन्हें सुना दी । शेरशाह ने मोदी को दूसरे दिन दरबार में आने को कहा ।
परन्तु शेरशाह इस घटना को सुनने के समय से ही गम्भीर और बेचैन थे । रात भर उन्हें नींद न आयी। रह-रहकर उनके सामने अपनी प्रगति का इतिहास तथा युवराज की करतूत घूम रही थी । उन्होंने सामान्य जागीरदार से ऊपर उठकर भारत का सिंहासन अपने पौरुष के बल पर प्राप्त किया, किन्तु उन्होंने अपनी सेना, कर्मचारीगण एवं प्रजाजनो का हृदय विश्वास और सद्भावना से जीता, यह भी कम महत्वपूर्ण न था । अतः गुण प्राप्ति के महत्त्व के ज्ञाता शेरशाह अपने पुत्र के अवगुण को देखकर चिन्तित थे । शेरशाह को लग रहा था कि यदि प्रजा की मर्यादा से खिलवाड़ की, उसकी भावनाओं की कीमत न की तो अनर्थ निश्चित है । यदि राजा - प्रजा में परस्पर विश्वास, स्नेह एवं सौहार्द समाप्त हो गया तो फिर राज्य चल ही नहीं सकता । युवराज को अपनी भूल का अनुभव एवं उसकी गम्भीरता समझाना बहुत आवश्यक है । फलतः प्रातः ही शेरशाह ने अपने युवराज को अपराधी की भाँति दरबार में लाने की आज्ञा दी ।
आज शेरशाह सूरी के दरबार में विशेष चहल-पहल थी । दरबारे-आम में हर व्यक्ति शंकित, चकित और स्तब्ध बैठा था । प्रधान सेवक ने जब शेरशाह को दरबार भर जाने की सूचना दी तो वे उस ओर चल पड़े ।
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