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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण - २
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युवराज को दरबार में लाया गया । शेरशाह ने पहले दुकानदार से उसकी शिकायत सुनी, फिर युवराज से प्रश्न पूछे । गवाहों से उसकी पुष्टि करायी । युवराज नतमस्तक था । उसने यह स्वीकार तो कर लिया था कि उसने दुकानदार की स्त्री पर पान फैंके, पर साथ ही उसने इस घटना को सामान्य सिद्ध करते हुए कहा"जहाँपनाह ! मैंने तो यूँही उस पर पान फेंक दिये थे, दुकानदार बेकार का तूल दे रहा है ।"
शेरशाह शेर की तरह गर्ज पड़े- "यूँही ! किसी की आबरू से खेल जाना यूँही हुआ ? तुम किस गुमान में हो 'वली अहद ( युवराज ) ! किसी की बीवी की इज्जत क्या होती है, इसका तुम्हें एहसास नहीं है । मैं अभी तुम्हें समझाये देता हूँ ।" और तुरन्त युवराज की पत्नी को दरबार में तलब किया गया। युवराज को अपना बचाव महँगा पड़ गया । लोग भौंचक्के से होकर धड़कते दिल से सब कार्यवाही देख रहे थे । बुरका ओढ़े जब युवराज वली अहद की बीवी दरबार में आई तो शेरशाह पुनः गर्जे -- "इसका मुँह खोल दो ।" युवराज ने आँखें बन्द कर लीं, बेगम भी नीची निगाह किये खड़ी रही । शेरशाह ने दुकानदार को अपने पास बुलाकर उसके हाथ में दो पान दिये और कहा - "ये पान गुनाहगार की बीवी पर फेंक दो ।"
शेरशाह का हृदय फड़बेकसूर आँखों में आँसू
इतने कठोर दण्ड की आशा किसी को न थी । स्वयं फड़ा रहा था । उसकी बहू लाचार सबके सामने मुँह खोले भरे सहमी खड़ी थी । युवराज के जीवन की बड़ी हानि के बिसात में न थी । युवराज के जीवन को गलत दिशा से मोड़कर सही मार्ग पर लाना, किन्तु भीतर से
सामने यह हानि कुछ
।
इसके सिवाय नहीं हो सकता था । अतः शेरशाह ऊपर से कठोर, शान्त व गम्भीर थे । फरियादी पान हाथ में लिये शान्त खड़ा था रहा था । सहसा आगे बढ़कर उस सहमी खड़ी युवती के पैरों पर दोनों पान रख दिये और हाथ जोड़कर बोला- “शाहंशाह ! आपके हुक्म की तामील हो गई । मैं यहाँ अपराध रोके जाने की फरियाद लेकर आया था, अपराध करने नहीं । इस बेचारी का तो कोई अपराध है नहीं । हमारे यहाँ तो स्त्रीमात्र पूज्य एवं देवी मानी जाती है । जो अपराध युवराज ने अज्ञानवश किया, यदि मैं भी जानबूझकर उस अपराध को करूँगा तो परमात्मा के आगे क्या जवाब दूंगा ? युवराज को दण्ड मिल चुका । जहाँपनाह! दुनिया ने देख लिया कि आपकी निगाह में प्रजा की हर बहू-बेटी की इज्जत अपनी बहू-बेटी के समान है । आपकी इस आज्ञा के न पालन करने का यदि कोई दण्ड हो तो मुझे दिया जाये, परन्तु इस देवी के प्रति मुझे अपराधी न बनाया जाये, यह मेरी हार्दिक फरियाद है ।"
सभी उपस्थित जनता, युवराज, बेगम एवं गईं । शेरशाह ने दुकानदार की पीठ ठोकी, बोला - ही नहीं, हुक्म भी है, इसे टालने की मुझमें ताकत नहीं है । तुमने मेरे काम को
शेरशाह तक की आँखें गीली हो "तुम्हारी यह फरियाद, फरियाद
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मन में द्वन्द्व मच
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