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________________ आनन्द प्रवचन : भाग १० ऐसे आदर्श राजा के शासनाधीन रहने से कौन इन्कार कर सकता है ? यही कारण है कि राजा को समस्त अधिपों में मुख्य और सर्वशक्तिमान, सर्वतेजोमय माना गया । वास्तव में यह उचित भी था । सर्वश्रेष्ठ राज्याधिप कौन ? २२ कई लोग समझते हैं कि सत्ता प्राप्त हो जाने तथा जनता पर अधिकाधिक कर लादकर राज्य की आय बढ़ाने, अपना रौब एवं दबदबा जमाने एवं प्रजा को मीठी-मीठी बातों से खुश कर देने मात्र से हम श्रेष्ठ राज्याधिप हो सकते हैं, पर यह निरी भ्रान्ति है । एक ऐतिहासिक उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट कर देना उचित होगाप्रियदर्शी सम्राट अशोक का जन्मदिन महोत्सव था । सभी प्रान्तों के शासक आये हुए । सम्राट की ओर से घोषणा की गई - सर्वश्रेष्ठ शासक को पुरस्कार दिया जायेगा । उत्तरी सीमा के शासक के कहा - 'प्रादेशिक शासन की आय मैंने तीन गुनी बढ़ा दी है ।' दक्षिण के प्रान्ताधिप ने कहा - ' इस वर्ष राज्यकोष में मेरे प्रान्त की ओर से गतवर्ष से दुगुना सोना अर्पित किया गया है ।' पूर्वी प्रान्तों के शासक ने कहा - 'पूर्वी सीमान्त के उपद्रवियों का मैंने सिर तोड़ दिया है ताकि वे फिर सिर उठाने का साहस न कर सकें ।' पश्चिम प्रदेशाधिपति बोले – 'मेरे राज्य में सेवकों का वेतन घटा दिया गया है एवं प्रजा पर कर बढ़ा दिया गया है, जिससे आय अनेक गुनी बढ़ गई है । आय के अन्य कई स्रोत भी ढूंढ लिये गये हैं ।' सबसे अन्त में मगध के प्रान्तीय शासक उठे । उन्होंने नम्र शब्दों में कहा"महाराज ! मैं क्या निवेदन करूँ ? मेरे प्रान्त ने इस वर्ष प्रतिवर्ष से आधे से भी कम धन राज्यकोष में भेजा है । प्रजा पर कर कम कर दिये गये हैं । राज्य-सेवकों को कुछ अधिक सुविधाएँ दी गई हैं, जिसके फलस्वरूप वे अधिक उत्साह, प्रामाणिकता और श्रम के साथ अपना कर्तव्य अदा कर रहे हैं । प्रान्त में सर्वत्र धर्मशालाएँ और कुँए बनवाये गये हैं, चिकित्सालय भी खोल दिये गये हैं, जिनमें निःशुल्क चिकित्सा होती है, प्रत्येक कस्बे और बड़े गाँव में पाठशाला खोली गई हैं, जहाँ निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध है ।" यह सुनकर सम्राट् सिंहासन से उठे और घोषणा की कि मुझे प्रजा के रक्त से रंजित स्वर्ण राशि नहीं चाहिए, प्रजा को सुख-सुविधाएँ मिलें यही मेरी हार्दिक इच्छा है । मगध के प्रान्तीय शासक सर्वश्रेष्ठ शासक हैं । इस वर्ष का पुरस्कार इन्हें देकर गौरवान्वित करो । सारा राज दरबार 'धन्य धन्य' शब्दों से गूंज उठा । वास्तव में राज्याधिप की सर्वश्रेष्ठता का मापदण्ड अधिकाधिक सत्ता और अधिकार प्राप्त करना नहीं है, अपितु सत्ता और 'अधिकारों का कम से कम उपयोग करके तथा कम से कम दण्डव्यवस्था और कानूनों से प्रजा पर शासन करना तथा प्रजा स्वतःप्रेरित होकर नियमों और कानूनों का पालन कर सके, इस प्रकार से प्रशिक्षित करना है । जहाँ ऐसी प्रशिक्षित प्रजा होती है, वह स्वतः ही धर्म मर्यादा में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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