________________
३९८
आनन्द प्रवचन : भाग १०
जहाँ शील और सदाचार की मर्यादाएँ लुप्त हो जाती हैं, वहां परिवार का सर्वनाश हो जाता है, सम्पत्ति स्वाहा हो जाती है, समाज पिशाचों का निवास बन जाता है, उस राष्ट्र में स्वच्छन्दता और अराजकता व्याप्त हो जाती है।
- शील का प्रभाव केवल मानवजगत् पर ही नहीं है, समस्त प्राणिजगत् और प्रकृति जगत् पर भी है । शील के प्रभाव से देवों का आसन डोल जाता है, इन्द्र का सिंहासन भी हिल जाता है । मनुष्य ही नहीं, देव, दानव आदि सभी शीलवान के चरणों में नतमस्तक होते हैं । कहा भी है
देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस किन्नरा।
बंभयारी नमसंति, दुक्करं जे करेंति तं ॥ 'देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर आदि सब उस ब्रह्मचारी को नमस्कार करते हैं, जो दुष्कर ब्रह्मचर्य की आराधना करता है।'
आज लोग चमत्कारों की चकाचौंध से झटपट प्रभावित हो जाते हैं, जादूटोना के चमत्कार तो मामूली चीजें हैं। इनसे भी बढ़कर चमत्कार शील में है, जिसका प्रभाव सिर्फ मनुष्यों पर ही नहीं, देवों, दानवों, यक्ष-राक्षसों तथा अन्य समस्त प्राणियों तथा प्रकृति पर भी पड़ता है। सामान्य मन्त्र-तन्त्रविदों के पास ऐसा चमत्कार नहीं है।
आपने जैनधर्म में प्रसिद्ध १६ सतियों के जीवन-चरित्र सुने होंगे। क्या आपने नहीं सुना कि शीलवती सीता के प्रभाव से आग भी पानी-पानी हो गई थी, शीलवान हनुमानजी के आदेश से समुद्र भी छोटी नदी-सा बन गया था। शीलवान सुदर्शन सेठ के प्रभाव से शूली भी सिंहासन बन गई थी। अन्य शीलवानों के प्रभाव से सिंह, सर्प जैसे क्रूर प्राणी भी मित्र बन गये थे। स्वामी रामतीर्थ ने हिमालय की बर्फीली चट्टानों को जब आदेश दिया-'ओ हिमालय की बर्फीली चट्टानो शाहंशाह राम तुम्हें हट जाने का आदेश देता है, तब सचमुच वे चट्टानें पिघल गयीं। योगीराज भर्तृहरि ने शील के अद्भुत प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है
वह्निस्तस्य जलायते, जलनिधिः कल्यायते तत्क्षणात्, मेरुः स्वल्पशिलायते, मगपतिः सद्यः कुरंगायते । व्यालो माल्यगुणायते विषरसः पीयूषवर्षायते,
यस्यांगेऽखिललोकवल्लभतरं शीलं समुन्मीलति ॥ "जिसके अंग-अंग में अखिल लोक का अतिवल्लभ शील ओतप्रोत है, उसके लिए अग्नि तत्काल पानी बन जाती है, समुद्र छोटी नदी-सा बन जाता है, मेरु पर्वत छोटी-सी शिला बन जाता है, सिंह शीघ्र ही हिरण की तरह व्यवहार करने लगता है, सर्प फूल की माला बन जाता है, विष अमृत-सा बन जाता है।"
भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल इतिहास में उन्हीं व्यक्तियों का नाम प्रातः स्मरणीय माना जाता है, जो शीलवान हैं । प्रातःकाल शीलवान पुरुषों का नाम लेना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org