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शीलवान मात्मा ही यशस्वी ३६७ "एक्कमि बंभचेरे जम्मि य आराहियम्मि माराहियं वयमिणं सम्वं सोलं तबो यविजओ य संजमो य खंती मुत्ती गती तहेव य।"
__"ब्रह्मचर्य सभी व्रतों में बड़ा व्रत है। इसकी आराधना से सभी व्रतों की आराधना हो जाती है। ब्रह्मचर्य की साधना के साथ सत्य, शील, तप, विनय, संयम, क्षमा, निर्लोभता एवं गुप्ति इन सभी की साधना हो जाती है।"
इस दृष्टि से मर्यादित या पूर्ण ब्रह्मचर्य के साथ-साथ शीलवान के जीवन में प्रायः सभी ब्रत और सभी सद्गुण आ जाने चाहिए, तभी शीलवान की आत्मा यशस्वी और सफल हो सकती है।
- शीलवान की आत्मा कितनी प्रभावशाली व महान !
शील के आचरण से शारीरिक ही नहीं, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक सर्वतोमुखी विकास होता है। शील शरीर, मन और आत्मा तीनों को बलवान बनाता है । मानव-जीवन में पड़ी हुई कुटेबें, बुरे स्वभाव, बुरे आचरण, बुरी वृत्तियाँ, मन के खराब विकल्प, पाँचों इन्द्रियों की विषयों में भटकने की आदत, शरीर को लगे हुए कुव्यसन, खान-पान और वचन पर असंयम, मैथुनसेवन-लालसा आदि सभी दुर्गुणों, दुराचारों-अनाचारों एवं दुर्व्यवहारों को दूर करके जीवन में सुन्दर आदतों, सुस्वभाव, सदाचार, मन में सद्विचार, इन्द्रिय-विषयों के प्रति अनासक्ति, खान-पान, शयन एवं वचन में विवेक एवं सुन्दर व्यवहार की स्थापना करने, जीवन को सुसंस्कारी बनाकर उन्नत दशा पर पहुंचाने और सद्गुणों से विभूषित करने वाला अगर कोई है तो 'शील' ही है । शील की महिमा-गान योगी भर्तृहरि के शब्दों में देखिए
ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता, शौर्यस्य वाक्संयमो, ज्ञानस्योपशमः श्रुतस्य विनयो, वित्तस्य पात्रे व्ययः । अक्रोधस्तपसः क्षमा प्रभवितुर्धर्मस्य निर्व्याजता,
सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं शीलं परं भूषणम् ॥ 'ऐश्वर्य का आभूषण सौजन्य है, शौर्य का वाणी पर संयम है, ज्ञान का उपशम है, श्रुत का विनय है और धन का आभूषण है-पात्र में व्यय करना । इसी प्रकार तपस्या का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का निश्छलता आभूषग है । परन्तु इन गुणों का सर्वस्व कारण यह शील है, जो सर्वश्रेष्ठ आभूषण है।'
शील के माहात्म्य का क्या वर्णन किया जाए। अगर गहराई से सोचा जाए तो सारा कुटुम्ब, नगर, ग्राम, राष्ट्र एवं विश्व तक शील पर टिका हुआ है । जहां शील है, वहीं परस्पर एक-दूसरे का प्रेम निभता है, विश्वास टिकता है, सम्पदाएँ आती हैं, सुव्यवस्था और सुख-शान्ति व्याप्त रहती है, इसीलिए कहा गया है
. शील रतन सबसे बड़ो, सब रतनों को खान । - तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ।
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