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१९६ आनन्द प्रवचन : भाग १० का समावेश हो ही जाता है, क्योंकि बौद्धधर्म में ये 'पंचशील' के नाम से प्रसिद्ध है। पांचवां शील वहाँ अपरिग्रहवृत्ति के बदले मादक वस्तु का त्याग है ।
भगवती सूत्र में शीलसम्पन्न और श्रुतसम्पन्न की चौभंगी का वर्णन है, वहाँ शील शब्द से चारित्र अर्थ का ही ग्रहण किया जाता है । चारित्र में अहिंसा, सत्य पांचों व्रत आ जाते हैं । जो व्यक्ति शील का पालन करेगा, वह साधु हो, चाहे श्रावक अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार इन पाँचों व्रतों का पालन करेगा ही । जो साधु पूर्ण रूप से शील अंगीकार करेगा, यदि वह जीवहिंसा करेगा, असत्य बोलेगा, चोरी करेगा या परिग्रहवृत्ति रखेगा तो समाज या नगर में कोई उसे शीलवान कहने को तैयार न होगा। इसी प्रकार जो गृहस्थ मर्यादित रूप से शील का-स्वपत्नी सन्तोषव्रत को स्वीकार करेगा, अथवा सपत्नीक पूर्णतया शीलवत अंगीकार करेगा, वह यदि अपनी गृहस्थ श्रावक की भूमिका के अनुरूप अहिंसा-सत्यादि की मर्यादा लांघकर हिंसा, असत्य, चोरी, परिग्रह-सीमातिक्रमण आदि करेगा तो जनता उसे शीलपालक या सच्चरित्र नहीं कहेगी। इस दृष्टि से शील में पांचों व्रतों का समावेश हो जाता है । और शीलवान की पहिचान इन पाँचों व्रतों के पालन-अहिंसादि धर्म के आचरण से हो जाएगी।
तत्त्वार्थ सूत्र में शील शब्द से सात उपव्रतों (तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत) का ग्रहण किया गया है। वहाँ 'व्रतशीलेषु पंच-पंच यथाक्रमम्' कहकर पाँच अणुव्रत और सात शील के क्रमशः पाँच-पाँच अतिचार बताये हैं। इस दृष्टि से शील का अर्थ होता है-जीवन में खान-पान, शयन, रहन-सहन आदि की मर्यादाओं में रहना, इन्द्रिय-विषयों पर अनासक्ति और कषायों पर विजय प्राप्त करने का पुरुषार्थ, इन्द्रियों और मन की सुन्दर आदतें, सुस्वभाव और दानादि उदार व्यवहार अथवा नम्रता का व्यवहार ।
____ अन्तर्राष्ट्रीय (राजनीतिक) पंचशील में भी अनाक्रमण, अहस्तक्षेप, सहअस्तित्व, सार्वभौमत्व, परस्पर सहयोग–यह राष्ट्रीय आचार संहिता आ जाती है । इस अन्तर्राष्ट्रीय पंचशील से राष्ट्रों के लिए चरित्र का पालन अभीष्ट है ।
__इस प्रकार चारित्र, सदाचार, सच्चरित्रता, सद्व्यवहार, ब्रह्मचर्य, इन्द्रियमनःसंयम आदि के पालन से शीलवान को देखा-परखा जा सकता है। संजुत्तनिकाय में, शीलवान की पहचान बताते हुए कहा है
___पंडितो सीलसंपन्नो जलं अग्गीव भासति' ... 'शोलसम्पन्न पण्डित प्रज्वलित अग्नि की तरह प्रकाशमान होता है।'
शील का अगर ब्रह्मचर्य अर्थ ही लें, तो भी वह इतना महान व्रत है कि उसके अन्तर्गत सभी व्रतों का पालन आ जाता है । इसके अतिरिक्त तप, विनय, संयम, क्षमा, निर्लोभता, गुप्ति आदि का भी आचरण ब्रह्मचर्य में गिना गया है । प्रश्नव्याकरण सूत्र में बताया गया है
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