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________________ शीलवान आत्मा ही यशस्वी ३६६ मांगलिक माना जाता है । शास्त्र में बताया गया है कि इन्द्र अपने सिंहासन पर बैठतें समय णमो बंभयारिस्स' (ब्रह्मचारी को नमस्कार हो) कहकर नमन करता है। इन्द्र या देव व्रताचरण नहीं कर सकते, लेकिन शील, सत्य, संयम आदि का पालन करने वालों को वन्दन-नमन तो करते ही हैं । वे अपनी सभा में ऐसी कोई कामवासना की बात नहीं करते, जो शील की मर्यादा के विरुद्ध हो । साथ ही ये अपने सभागहों में समय-समय पर शीलमूर्ति तीर्थंकरों तथा शीलवान महापुरुषों एवं महासतियों के जीवन की चर्चा करते हैं, उनके जीवन से शील की प्रेरणा लेने को कहते हैं, उनके शील की प्रशंसा करते हैं। शीलवानों के प्रति भक्ति एवं श्रद्धा के साथ बहुमान किया जाता है। ___ शीलवान पुरुष के तेजस्वी व्यक्तित्व के समक्ष विरोधी से विरोधी, पापी से पापी एवं दुराचारी से दुराचारी व्यक्ति भी झुक जाता है, प्रभावित हो जाता है, हतप्रभ हो जाता है । कहा भी है अमराः किकरायन्ते सिवयः सहसंगताः । समीपस्थायिनी सम्पच्छोलालंकारशालिनाम् ।। अर्थात्-जिनकी मात्मा शीलरूपी अलंकार से सुशोभित है, उनके सामने देवता भी दास बन जाते हैं, सिद्धियां उनकी सहचरी बन जाती हैं और लक्ष्मी उनके सामने हाथ जोड़े खड़ी रहती है । सौन्दरानन्द काव्य में शील की महिमा बताते हुए कहा है शीलमास्थाय वर्तन्ते, सर्वा हि श्रेयसि क्रियाः । स्पानादीनीव कार्याणि, प्रतिष्ठाय वसुन्धराम् ॥ 'शील के आश्रय से सभी श्रेयस्कर कार्य सम्पन्न होते हैं, जैसे पृथ्वी के आधार से बैठने, खड़ा होने आदि कार्य होते हैं।' शीलवान पुरुष मन में जिस बात की इच्छा करता है, वह उसे प्राप्त हो जाती है । कुरूप से कुरूप और बेडौल से बेडौल व्यक्ति भी शीलवान हो तो संसार में पूजा जाता है। नीति-कथाकार ईसप बहुत ही कुरूप, दुबला-पतला और फिसड्डी था। कोई उसे गुलामों के बाजार में खरीदने को तैयार न था। आखिर एक दार्शनिक ने उसे सस्ते में खरीद लिया । उसने शीलनिष्ठ बनकर मालिक के काम से अतिरिक्त समय में चिन्तन-मनन करके सुन्दर नीति-कथाएँ लिखीं और अपनी बौद्धिक प्रतिभा का परिचय जगत को दिया। अतः कुरूप-दुर्बल ईसप शील निष्ठा के कारण अन्त में यूनान में पूज्यनीय, आदरणीय एवं यशस्वी बन गया । कुमारी पेट्राक्रॉस २६-२७ वर्ष की लोकप्रिय लड़की है, जो जर्मन टेलिविजन केन्द्र पर जैसे ही मधुर स्वर से कहती है-'देवियो और सज्जनो ! यह जर्मन टेलिविजन केन्द्र है।' वैसे ही हजारों की संख्या में बालक, वृद्ध और युवक नर नारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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