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________________ अनवस्थित आत्मा : अपना ही शत्रु ३८५ ऐसे अनवस्थित व्यक्ति अपनी आत्मा के स्वयं ही दुश्मन बन जाते हैं। मन की विशृंखलित, अस्तव्यस्त या अनेकाग्र दशा भी व्यक्ति की आत्मा को अनवस्थित कर देती है। किसी वस्तु के विषय में मनुष्य अनजान हो सकता है, किन्तु उस कार्य में असफलता का कारण मनुष्य के चित्त की अस्थिरता या अनवधानता को ही कहा जायेगा। ज्ञान और अनुभव की कमी के कारण नहीं, किन्तु चित्त की अस्थिरता, असावधानी या दत्तचित्तता न होने के कारण ही कार्य में यथोचित सफलता या पूर्णता नहीं मिल पाती। जिस कार्य को कोई व्यक्ति जानता ही नहीं, उसमें भूल सम्भव है, उसे सीखना पड़ता है। मगर सीखने के बाद भी उस कार्य की सारी जटिलताएँ दूर नहीं हो जातीं। वे दूर होती हैं-स्थिरचित्त या दत्तचित्त होकर उस कार्य को करने से। किसी भी विषय में सफलता के लिए चित्त की स्थिरता और पूर्ण तन्मयता होनी आवश्यक है। सीखने और जानने के लिए सही तरीका यह है कि बताने या सिखाने वाले की बातों को ध्यानपूर्वक, दत्तावधान होकर सुनते हैं या नहीं। स्वाध्याय में जो केवल पढ़ जाने की और धर्मोपदेश में जो केवल सुन जाने की क्रिया पूर्ण कर लेता है, उससे उसके पल्ले कुछ भी ज्ञान नहीं पड़ता, न उसका किसी तरह का मानसिक या चारित्रिक विकास हो पाता है । कोई विद्यार्थी यह कहे कि उसने सारी पाठ्यपुस्तकें दो-दो बार पढ़ी हैं, फिर भी उसे फेल कैसे कर दिया गया ? तो यही समझना चाहिए कि उसने केवल पढ़ा है, उस पर एकाग्रता या ध्यानपूर्वक मनन नहीं किया। केवल ग्रन्थ के शब्द दुहराते चले जायें पर उनके अर्थ और आशय पर जरा भी ध्यान न दें तो उस स्वाध्याय या अध्ययन का लाभ ही क्या होगा? यही बात अनवस्थित व्यक्ति की आत्मा के सम्बन्ध में समझ लेनी चाहिए। एक उदाहरण द्वारा मैं अपनी बात को समझा देता हूँ श्रीपुरनिवासी वसु सेठ की पत्नी गोमती अपने पति के दिवंगत हो जाने के बाद अपने पुत्र धनपाल की पत्नी-पुत्रवधू- के साथ निरन्तर कलह किया करती थी। एक दिन पुत्र ने कहा--"मां ! आप घर की चिन्ता छोड़कर धर्मध्यान में अपना चित्त लगाएँ। अब तक आपने घर के बखेड़ों में फंसे रहकर धर्म-श्रवण नहीं किया, अतः अब आप इधर की सब चिन्ता छोड़कर धर्म-श्रवण करें।" यों कहकर एक शास्त्रवाचक को अपने घर पर बुलाया। उसने शास्त्रवाचन प्रारम्भ किया। गोमती शास्त्र सुनने बैठी, परन्तु उसका चित्त बिखरा रहता था, वह ध्यान नहीं देती थी। शास्त्रपाठक ने कहा-'भीष्म उवाच' । घर की खिड़की में से आधे घुसे हुए कुत्ते की तरफ गोमती का ध्यान गया, वह वहीं से 'हट हट' यों कहती हुई उठी और खिड़की के रखवाले पर नाराज होकर उसे उपालम्भ दिया। फिर वापस आकर शास्त्र सुनने बैठी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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