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________________ ३८२ आनन्द प्रवचन : भाग १० वस्तुतः अभाव सामर्थ्य का नहीं, उसकी जानकारी और उस पर दृढ़-विश्वास की कमी है, जिसके कारण उनकी आत्मा डांवाडोल होकर मनोविकारों के आगे घुटने टेक देती है । आत्मोन्नति, आत्मविकास एवं आत्मस्थिरता के अवसर समय-समय पर उनके समक्ष उपास्थित होते रहते हैं, पर अनवस्थित आत्मा होने से वे उनका लाभ नहीं उठा पाते, बल्कि ऐसे परम लाभ के अवसरों पर वे कायरता, दीनता एवं आत्महीनता से ग्रस्त होकर अपनी शक्ति के प्रति शंकाशील रहते हैं। उन्हें यह विश्वास ही नहीं होता कि वे भी अपनी आत्मा से महत्वपूर्ण कार्यों को कर सकते हैं, धर्म पर दृढ़ रह सकते हैं, भूतकाल में भी अनेक महापुरुषों ने अपनी आत्मशक्तियों पर दृढ़ विश्वास रखकर अनेक साहस के कार्य किये हैं, अपनी आत्मप्रगति की है। जो व्यक्ति अपने आत्मस्वरूप को, आत्मशक्तियों को जानकर उनमें अवस्थित रहते हैं, उन पर दृढ़ विश्वास रखते हैं, वे जब महत्वपूर्ण कार्य करने का साहस करते हैं तो परिस्थितियां भी उनके अनुकूल हो जाती हैं, अनेक सहयोगी भी आ जुटते हैं। महात्मा गांधी का उदाहरण हमारे सामने प्रत्यक्ष है । गांधीजी के पास कितने सीमित साधन थे। उनकी प्रारम्भिक साधना में कोचरब आश्रम में जब वे पहले-पहल रहने आये तो गांधी जी और कस्तूरबा दो ही थे, फिर उनके पास दूधाभाई नामक एक हरिजन परिवार रहने आया। बहुत ही सीमित साधन थे, धन भी उनके पास सीमित था। एक हरिजन को रखने के कारण जो धनिक उन्हें आश्रम चलाने के लिए आर्थिक सहायता देते थे, वे भी उनके विरोधी और असहयोगी बन गये थे। ऐसे समय में एक बार तो सामान्य साधक किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है, मगर गांधीजी घबराए नहीं, वे अपने सिद्धान्त पर अटल रहे। अपने आत्मविश्वास में स्थित रहे, उनका विश्वास भंग न हुआ। वे आत्मविश्वास और आत्मशक्तियों से परिचित थे। इसके फलस्वरूप उन्हें अदृश्य रूप से अचानक एक व्यक्ति की ओर से अर्थ सहायता मिल गई थी। अगर गांधीजी उस समय आत्मविश्वास में अवस्थित न रहते तो उनका आत्मविकास इतना नहीं बढ़ता। कई लोग कहते हैं, जिनके पास प्रचुर साधन होते हैं, वे ही अपने आत्मबल में एवं आत्मविश्वास पर टिके रह सकते हैं। परन्तु ऐसी बात नहीं है । जैसे सूर्य के प्रकाश में हर चीज चमकती है, अग्नि के पास जाकर हर चीज गर्म हो जाती है, वैसे ही आत्मबल में स्थित साहसी और दृढ़ आत्मविश्वासी के पास पहुंचे हुए थोड़े-से साधन भी अपनी पूरी उपयोगिता दिखाते हैं। एक बहादुर और साहसी व्यक्ति एक लाठी से ही इतनी विजय प्राप्त कर लेता है, जितनी कि एक डरपोक व्यक्ति तोपतलवार लेकर भी नहीं प्राप्त कर सकता। कमजोर वह नहीं, जिसका शरीर दुबला-पतला है; गरीब वह नहीं, जिसके पास पैसा कम है; मूर्ख वह नहीं, जिसके पास शिक्षा कम है । ये सब वस्तुएं आसानी से जुटाई जा सकती हैं, अथवा इनके बिना भी काम चलाया जा सकता है । कमजोर, दरिद्र या मूर्ख वह है, जिसके पास आन्तरिक बल नहीं, जिसे अपनी आत्म-शक्ति पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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