SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पतिव्रता लज्जायुक्त सोहती ३६३ के शस्त्रों से तीक्ष्ण होता जाता है । इस स्थिति से असन्तुष्ट होकर आज वे भी भारतीय दाम्पत्य जीवन को आदर्श मानने लगे हैं । सर्वांशतः पति में अनुरक्ता नारी : पतिव्रता पतिव्रता की एक पति के प्रति अनन्य निष्ठा, अनन्य श्रद्धा और भक्ति होती है । वह दूसरे पुरुष के सम्बन्ध में सोच ही नहीं सकती । गोस्वामी तुलसीदासजी ने चार कोटि की पतिव्रता का उल्लेख किया है उत्तम के अस बस मन मांही। सपनेहूं आनपुरुष जग नाहीं ॥ मध्यम परपति देखहि कैसे । भ्राता पिता पुत्र निज जैसे || धर्म विचारि समुझि कुल रहई । सो निकृष्ट त्रिय श्रुति अस कहई | बिन अवसर भयतें रह जोई। जानहु अधम नारि जग सोई ॥ शीलवती पतिव्रता नारी के जीवन में अद्भुत मनोबल होता है, उसे दूसरे की मनोभावनाओं का पता चल जाता है । राजा भोज प्रजा का अनन्य सेवक था । वह वेश बदलकर रात को गश्त लगाया करता था । उसे यही चिन्ता रहती थी कि मेरे राज्य में कोई भी व्यक्ति दुःखी न रहे । वह जनता के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझता था । वह अपनी नींद और आराम की परवाह न करके रात के अंधेरे में चुपचाप गश्त लगा रहा था कि एक मकान में से एक आवाज सुनाई दी। राजा छिपकर खड़ा हो गया और किवाड़ों के छेद से भीतर का दृश्य देखने लगा । उसने देखा कि एक षोडशी युवती अपने पति को भोजन कराने के लिए थाल परोसकर लाई है और आम का रस निकालने को तत्पर है । राजा उसके सौन्दर्य को देखकर मुग्ध हो गया और विकार - वासना की दृष्टि से उसे देखने लगा। उधर वह युवती उस आम में से रस निकालने का भरपूर प्रयास कर रही थी, मगर रस नहीं निकल रहा था। राजा उस समय साधुवेश में था । उसने कहा - "मुझे भिक्षा दो ।" युवती ने कहा - " आम का रस निकालकर पति को भोजन कराकर अभी भिक्षा देती हूँ ।" राजा विकारपूर्ण दृष्टि से युवती को निहार रहा था, उधर आम में से एक बूंद भी रस न निकला, तब युवती ने सम्बोधित करके कहा - "रे आम्रफल इतना कठोर क्यों हो गया कि एक बूंद भी रस नहीं छोड़ रहा है। मालूम होता है कि राजा भोज की दृष्टि में विकार आ गया है, जिससे तू रस नहीं छोड़ रहा है ।" उसके पति ने प्रतिवाद किया - "तू बावली तो नहीं हो गयी, राजा भोज जैसे पवित्रात्मा के सम्बन्ध में ऐसा विचार कर रही है ?" पत्नी बोली - "नहीं, मैं सोच-समझकर कह रही हूँ, या तो मेरे पतिव्रतधर्म में खराबी आ गयी है, या फिर राजा के मन में खराबी होनी चाहिए। मैं अपने आपको जानती हूँ । जब से मैंने होश सँभाला है, पर-पुरुष को पिता और भाई के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy