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आनन्द प्रवचन : भाग १०
समान माना है, फिर भी आम में से रस नहीं निकल रहा है; हो न हो, राजा की दृष्टि में विकार आया होगा।"
राजा भोज ने यह सुना तो पैरों तले की जमीन खिसकती मालूम होने लगी, पसीने से शरीर तर हो गया। वह फूट-फूट कर रोने लगा। फिर उसने अपने को धिक्कारते हुए -रे निर्लज्ज, पापी, तुझ-सा अधम इस संसार में और कौन होगा ? रक्षक होकर भक्षक बन गया, एक पुत्री को विकार दृष्टि से देखा ! अब किस मुंह से कहूँ कि देवि ! मैं ही हूँ वह नीच, कामी पुरुष, जिसके कारण आम में से रस नहीं निकल रहा है। इस पतिव्रता के आगे पाप का प्रायश्चित्त किये बिना पाप धुलेगा कैसे ?"
इस प्रकार राजा ने अपना मन मोड़ लिया, वह निर्विकार हो गया। राजा के मन से पाप विकार दूर होते ही आम को निचोड़ा तो उसमें से इतना रस निकला कि युवती के आश्चर्य का पार न रहा । उसने पति से कहा-"मालूम होता है, राजा भोज हमारे घर पधार गये हैं।"
यह सुनकर पति ने कहा- 'आज तू कैसी बातें कर रही है ?"
राजा से अब रहा न गया। वह साधु वेश में भिक्षा लेना तो भूल गया, उस पतिव्रता देवी के चरणों में गिर पड़ा। बोला-"क्षमा करो, देवि ! मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे राज्य में तुम जैसी सुशील देवियाँ मौजूद हैं । तूने मुझ जैसे पापी को डूबने से बचा लिया।" राजा होकर भी भोज ने नम्रतापूर्वक क्षमायाचना की।
उस देवी ने कहा- "आप मेरे पिता है, मैं आपकी पुत्री हूँ।"
दोनों के नेत्रों से स्नेहाश्रु उमड़ पड़े, दोनों के हृदय गद्गद हो गए। राजा की पापकालिमा धुल गई।
सचमुच, स्त्री के सतीत्व में इतनी शक्ति होती है कि उसे दूसरे की पवित्रअपवित्र भावनओं का पता लग जाता है। मनुस्मृति में ऐसी पतिव्रता नारी को साध्वी कहा गया है
पति या नाभिचरति, मनो-वाक्-कायसंवृता।
सा भर्तृलोकमाप्नोति, सद्भिः साध्वीति चोच्यते ॥ "जो स्त्री मन-वचन-काया से संयत होकर पति का उल्लंघन नहीं करती, यानी परपुरुष के प्रति जरा-सी भी विकार भावना नहीं लाती, वह भर्तृ लोक में जाती है,
और सत्पुरुषों द्वारा साध्वी कही जाती है।" पतिव्रता का मुख्य गुण : लज्जा
पतिव्रता का ही नहीं, समस्त नारी समाज का मुख्य गुण वेशभूषा, साजसज्जा, आभूषणपरिधान आदि नहीं, उसका मुख्य गुण लज्जा है । कहा भी है
___"न भूसणं भूसयते सरीरं, विभूसणं सीलहिरी य इत्थिया।"
शरीर को आभूषण विभूषित नहीं करते, स्त्रियों के लिए सब से महान् आभूषण हैं-शील और लज्जा।
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