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राजमन्त्री बुद्धिमान सोहता ३३६ उसने प्रधान की बहुत तलाश करवाई। आखिर अन्य मन्त्रियों को लेकर वह जंगल में प्रधान के पास पहुँचा । राजा ने प्रधान से कहा- “यह क्या स्वांग रचा रखा है ? यहाँ क्या करने लगे?"
प्रधान बोला-आपके द्वार पर तो धक्का खाता था, आपसे तो मिलना भी दूभर हो गया था, अतः अब मैं यहाँ ईश्वर से मिलने आया हूँ, तभी आप मेरे द्वार पर चलकर आये हैं । यहाँ मुझे शान्ति व आनन्द है।
प्रधान की बात सुनकर राजा की आँखें खुलीं। उसने प्रधान से क्षमा माँगी और बहुत आग्रह करके उसे अपने राज्य में ससम्मान ले गया।
___ वास्तव में जो राजभक्त मन्त्री होता है, वह विपद्ग्रस्त होने पर भी राजा व राज्य का बुरा नहीं चाहता ।
शास्त्रज्ञ-मन्त्री दर्शनशास्त्र, नीतिशास्त्र एवं धर्मशास्त्र आदि का जानकार होना चाहिए, तभी वह धर्माधर्म, नीति-अनीति तथा वस्तुस्थिति का यथार्थ निर्णय कर सकता है।
अभयकुमार राजा श्रेणिक का पुत्र और मगध जनपद का मन्त्री था। वह अत्यन्त बुद्धिशाली, शास्त्रज्ञ और धर्मात्मा था। साथ ही वह स्वयं व्रतधारी पक्का श्रावक था।
___ दशवकालिक सूत्र में ऐसे ही शास्त्रज्ञ, आचार-विचारनिपुण राजा, राजा के मन्त्रियों, माहनों एवं क्षत्रियों के साधुओं के पास जाकर सविनय प्रश्न पूछने का उल्लेख आता है
रायाणो रायमच्चा या माहणा अदुव खत्तिया।
पुच्छंति निहुअप्पाणं कहं भे आयारगोयरो॥ राजा, राजाओं के अमात्य (मन्त्री), माहन अथवा क्षत्रिय शान्त-आत्मा साधु के पास जाकर पूछते हैं-"भन्ते ! आपका आचार-गोचर (आचरण) कैसा है ?"
एक बार श्रेणिक राजा ने धर्मज्ञ एवं शास्त्रज्ञ बुद्धिमान मन्त्री अभयकुमार से पूछा- "इस नगरी में धर्मी ज्यादा हैं या अधर्मी ?"
अभयकुमार-“दिखने में तो धर्मी ही ज्यादा हैं ?"
श्रेणिक-"कैसी बात करते हो ? न्यायालय में रोज इतने मुकदमे आते हैं, फिर धर्मी कैसे ज्यादा हैं । मुझे तो अमियों के सिवाय अन्य कुछ नजर नहीं आता। तुम अपनी बात को सिद्ध करके बतलाओ।"
अभयकुमार ने कहा--"अच्छा महाराज ! इसे सिद्ध करने के लिए नगर के बाहर दो तम्बू तनवा दीजिए, एक काला और एक सफेद; और यह घोषणा करा दीजिए कि जो धर्मी हो, वह सफेद तम्बू में और अधर्मी हो, वह काले तम्बू में आ जाए। एक दरवाजा रखवाइए, जो ठीक से बन्द हो सके। फिर देख लीजिये परिणाम ।" राजा ने इसी प्रकार की व्यवस्था करवा कर ड्योडी पिटवा दी । सुनकर नगर सारा उमड़ पड़ा । सफेद तम्बू देखते ही देखते खचाखच भर गया और काले तम्बू
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