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________________ ३३० आनन्द प्रवचन : भाग १० बीरबल दूसरे दिन दरबार में न जाकर घर पर ही रहा। उसने एक लम्बा. सा बांस गाड़कर उस पर हांडी लटका दी। उसके नीचे आग जला दी। उधर बीरबल जब दरबार में नहीं पहुंचा तो बादशाह ने उसे बुलाने सेवकों को भेजा। उसने सेवकों के साथ अर्ज करवाई कि रात को दस्त लग जाने से कुछ कमजोरी आ गई है, अतः आज यह खिचड़ी पका रहा हूँ, पक जाने पर मैं खाकर आता हूं।" सेवकों ने बादशाह से सारी बात कही और यह भी कहा कि एक लम्बे-से बाँस पर खिचड़ी पक रही है। ___ अस्वस्थता और विचित्र खिचड़ी की बात सुनकर उसे देखने बादशाह स्वयं चलकर आया। बाँस पर टंगी खिचड़ी की हँडिया को देखकर बादशाह ने सविस्मय कहा-“बीरबल ! यह खिचड़ी कब तक पकेगी ? क्या तुम्हें विश्वास है कि इतनी दूर रही अग्नि का ताप वहाँ तक पहुंच जाएगा ?" बीरबल ने हँसते हुए कहा- "हाँ, क्यों नहीं जहाँपनाह ! जब एक ब्राह्मण आपके महल में जलते हुए दीपक की गर्मी से जल में बैठकर गर्मी महसूस कर सकता है, तब यह खिचड़ी की हँडिया कौन दूर है ?" बीरबल की बात बादशाह को एकदम लग गई। उन्हें अपनी भूल समझते देर न लगी। बादशाह ने उसी समय ब्राह्मण को बुलाकर ससम्मान समुचित पुरस्कार दे दिया। वास्तव में, अगर बीरबल उस ब्राह्मण के प्रति हुए अन्याय के विषय में बादशाह को युक्ति से न समझाता तो वह ब्राह्मण कभी न कभी राजविद्रोही बन सकता था, उसके मन में बादशाह के प्रति अश्रद्धा तो पैदा हो ही गई थी, प्रतिक्रिया भी शायद हुई हो। सत्ता-मदान्ध राजा के स्खलन के समय मन्त्री ही आलम्बन कई बार सत्ता के मद में अन्धा बना हुआ शासक अपने कर्तव्य और धर्म से च्युत होने लगता है, उस समय मन्त्री ही उसके लिए आलम्बन होता है । अगर मन्त्री उस समय अपनी सूझबूझ से उसे सहारा न दे तो राजा को गिरते देर नहीं लगती । कहा भी है महीभुजो मदान्धस्य संकीर्णस्येव दन्तिनः । स्खलतो हि करालम्बः सुहृत्सचिवचेष्टितम् ॥ "जैसे संकीर्ण (सांकल खुले हुए) हाथी के मदान्ध होने से गिरने पर उसकी सूंड का सहारा ही अच्छा उपाय होता है, वैसे ही मदान्ध और अविवेकी राजा के स्खलित होने पर मित्रवत् मन्त्री का करालम्बन ठीक उपाय होगा है।" दूसरी बात यह है कि जिस समय शासक पर या शासन पर चारों ओर संकट के बादल छाये हुए हों, चारों ओर से दुष्ट लोगों ने या दुष्ट राजकर्मचारियों ने भ्रष्टाचार का जाल बिछा रखा हो, उस समय शासन या शासक को पतन से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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