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________________ राजमन्त्री बुद्धिमान सोहता ३३१ एकमात्र बुद्धिमान राजभक्त विश्वस्त एवं वफादार मन्त्री ही बचाने में समर्थ होता है । मन्त्री उस समय अपने प्राणों की बाजी लगा देता है । अपना सर्वस्व होम देता है या न्यौछावर कर देता है । महाराणा प्रताप को मेवाड़ पर आए हुए संकट से तथा मेवाड़ की स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए दानवीर मन्त्री भामाशाह ने अपनी सर्वस्व पूँजी अर्पण कर दी थी । जैन इतिहास की एक चमकती हुई कहानी इस सम्बन्ध में प्रस्तुत कर रहा हूँ पाटलिपुत्र का धर्मप्राण राजा उदायी उपाश्रय में जब पोषधव्रत में था, तब उसके गले पर छुरी चलाकर कपटी साधुवेषी विनयरत्न भाग गया था । आचार्य ने राजा उदायी का प्राणान्त हुआ देख शासन की हीलना होने से बचाने के लिए स्वयं ने भी समाधिमरण स्वीकार किया । प्रातः काल आचार्यश्री और उदायी राजा दोनों को मरण-शरण जानकर जनता ने दोनों का अन्तिम संस्कार किया । राजा उदायी अपुत्र थे, अतः प्रमुख नागरिकों ने राजा के योग्य पुरुष का पता लगाने के लिए एक घोड़े को श्रृंगारित करके नगर के अन्दर और बाहर सर्वत्र घुमाया। संस्कारी घोड़ा एक नापित के पास आया और हिनहिनाने लगा । प्रमुखजनों ने नापित को राजा के योग्य समझकर राजगद्दी पर बिठा दिया । परन्तु राजदरबारी एवं राज- कर्मचारी उसे नाई समझकर ईर्ष्या से उसका आदर नहीं करते थे । अपना अनादर होते देख नापित नन्द राजा ने सुभटों से कहा - सुभटो ! इन लोगों को पकड़ो। परन्तु सुभट भी एक दूसरे के सामने देखकर हंसने लगे । तब नन्द नापित राजा ने दीवार पर चित्रित दो पुरुषों की ओर देखा कि तत्काल वे दोनों पुरुष हाथ में तलवार लेकर अट्टहास करने के बाद लोगों के सम्मुख हुए । उन्हें देखकर कई भाग गये, कई पिट गये । यह चमत्कार देखकर सभी प्रधान पुरुष एवं राजकर्मचारी राजा से क्षमा माँगकर विनय सत्कार करने लगे । नन्द राजा के पास कोई मन्त्री नहीं था । वह किसी योग्य मन्त्री की फिराक में था । पाटलिपुत्र में कपिल अग्निहोत्र रहता था, जो जैन साधुओं की सेवा एवं सत्संग करने से श्रावक बन गया था । कपिल के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उसने 'कल्पक' रखा। कल्पक विद्यालय में रहकर चौदह विद्याओं में पारंगत हो गया । उसके माता-पिता तो दिवंगत हो चुके थे । कल्पक को योग्य वर समझकर एक ब्राह्मण ने अपनी कन्या दे दी । विवाहित कल्पक पण्डित के पास जो भी विद्यार्थी पढ़ने आते, उन्हें परिश्रम से पढ़ाता था । वह बड़ा ही सन्तोषी था, किसी से दान भी नहीं लेता था । नन्द राजा ने कल्पक पण्डित को मन्त्री के योग्य बुद्धिमान एवं व्यवहारकुशल जानकर अपने पास बुलाया । मन्त्री पद स्वीकार करने का साग्रह अनुरोध किया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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