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राजमन्त्री बुद्धिमान सोहता ३२६ जरा-सा भी चूक जाता है, अपने कर्तव्य और दायित्व से तो राज्य का बहुत बड़ा अहित हो जाता है। राजा और प्रजा के सम्बन्ध बिगड़ जाने पर उन्हें सुधारना बड़ा कठिन कार्य होता है। नीतिकार कहते है
नरपतिहितकर्ता द्वष्यतां याति लोके, जनपदहितकर्ता त्यज्यते पार्थिवेन । इति महति विरोधे विद्यमाने समाने,
नपति-जनपदानां दुर्लभः कार्यकर्ता ॥ "अगर मन्त्री या प्रधान शासक का हित करता है, प्रजा के हित की उपेक्षा कर देता है तो जनता की नाराजी का कारण बनता है और यदि वह राजा का हित न सोचकर जनपद (जनता) का ही हित करता है, तो राजा उसे छोड़ देता है । इस प्रकार राजा और प्रजा के बीच हितों में महान विरोध होने पर मन्त्रीरूपी कार्यकर्ता के लिए कार्य करना अत्यन्त दुष्कर हो जाता है ।"
___ अकबर और बीरबल की-बादशाह और मन्त्री की जुगल जोड़ी प्रसिद्ध है । बादशाह और मन्त्री दोनों एक दूसरे के सुहृद थे, हितैषी थे। परन्तु बीरबल मन्त्री होने के नाते इस बात का पूरा ध्यान रखता था कि कहीं किसी प्रजाजन का मेरे से या बादशाह से अहित न हो जाय । साथ ही वह बादशाह को युक्ति और सूझबूझ के आधार पर समझाता था। इस तरह राजा और प्रजा के हितों में परस्पर विरोध होता तो उसे शान्त कर देता था।
एक रोचक उदाहरण लीजिए
एक बार अकबर बादशाह ने यह घोषणा करवाई कि जो रातभर तालाब के पानी में रहेगा, उसे बादशाह की ओर से इनाम दिया जाएगा। शाही पुरस्कार पाने के लिये कई व्यक्ति ललचाये, परन्तु रातभर कड़ाके की ठण्ड में जल में खड़े रहना आसान नहीं था। अन्त में एक ब्राह्मण सारी रात जल में रहकर प्रातःकाल कुछ इनाम पाने की आशा से बादशाह के सामने उपस्थित हुआ। बादशाह ने पहरेदारों से भी जाँच करवाई तो उसे ठीक पाया। फिर भी बादशाह ने उससे पूछा- "तुम सारी रात जल में कैसे रह सके ?"
ब्राह्मण बोला-'आपके महलों में जो दीपक जल रहा था, उसकी ओर मैंने एकटक दृष्टि लगा दी और यों रात गुजार दी।"
बादशाह ने कहा- "तब तो तुमको क्या तकलीफ हुई ? तुम्हें दीपक की गर्मी से ठण्ड महसूस ही नहीं हुई । तब तो तुम पुरस्कार पाने के अधिकारी कहाँ रहे ? भाग जाओ।"
बेचारा ब्राह्मण अपना-सा मुंह लिए बीरबल के पास आया, और अपने पर हुए अन्याय की आपबीती कही । बीरबल ने उसे आश्वासन देकर विदा किया।
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