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राजमन्त्री बुद्धिमान सोहता
प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज आपके समक्ष मन्त्री-जीवन के विषय में चर्चा करना चाहता हूँ। धर्मशासन की तरह राज्य-शासन भी सुस्थिर, व्यवस्थित, न्यायनिष्ठ, धर्मप्रधान एवं संस्कृति प्रेमी हो, यह अत्यन्त आवश्यक है। राज्य-शासन इस प्रकार का तभी हो सकता है या रह सकता है, जब शासक भी वैसा हो, इन्हीं सद्गुणों से ओतप्रोत हो, और शासक को समय-समय पर अच्छी सूझ-बूझ से, कुशलता से, परिस्थिति की जानकारी, शासन की उन्नति के उपाय, प्रजा की न्याय और सुरक्षा की व्यवस्था बताने वाला कुशल राजनीतिज्ञ, धर्मप्रिय, शासन के प्रति वफादार एवं कार्यसक्षम मन्त्री हो, तभी शासक उन सद्गुणों से हरा-भरा रह सकता है । शासक को अच्छा या बुरा, क्रूर या दयालु, न्याय-नीतिपरायण या अन्याय-अनीतिपरायण, धर्मप्रिय या अधर्मप्रिय बनाने में मन्त्री का बहुत बड़ा हाथ रहता है।
__इसीलिए महर्षि गौतम इस जीवनसूत्र में मन्त्री के जीवन के सम्बन्ध में कहते हैं
'बुद्धिजुओ सोहइ रायमंती।' "राजा का मन्त्री बुद्धियुक्त हो, सूझ-बूझ का धनी हो, तभी शोभा देता है।"
गौतमकुलक का यह पैंतालीसवां जीवनसूत्र है । मन्त्री जीवन के विविध पहलुओं को आज हम क्रमशः छुएँगे। राजा और मन्त्री का अटूट सम्बन्ध
__शासन को सुव्यवस्थित, समृद्ध, सुस्थिर एवं जनकल्याणकारी बनाने के लिए एक शासक-राजा बनाया जाता है, किन्तु राजा के साथ मन्त्री चतुर, बुद्धिमान, व्यवहारकुशल, राजभक्त एवं प्रजाहितैषी न हो तो, अकेले राजा से राज्य सुस्थिर नहीं रह सकता। जिस समय शासन पर चारों ओर शत्रुओं का संकट छाया हुआ हो, अथवा शासक के अन्याय-अत्याचार के कारण प्रजा का उत्पीड़न हो रहा हो, प्रजा विद्रोह करने या उस राज्य को छोड़कर अन्यत्र बसने के लिए जाने को उतारू हो रही हो, उस समय केवल शासक से इन समस्याओं का समुचित हल नहीं हो सकता, उस समय कुशल और बुद्धिमान मन्त्री के सहयोग और अवलम्बन की नितान्त आवश्यकता
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