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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण-१ ७ पहले थे वे मर्द, मर्द से नार कहाए । कर गंगा में स्नान, पाप सब धोय गमाए॥ कर शिल्ला से युद्ध, घाव बरछिन के खाए ।
कूद पड़े अग्नि कुण्ड में, तब हम बड़े कहाए । अधिप को भी बड़ा इसीलिए माना जाता है कि समय आने पर वह स्वयं कष्ट और संकट को सह लेता है किन्तु दूसरों को कष्ट और संकट में नहीं डालता। एक ऐतिहासिक उदाहरण द्वारा अपनी बात को स्पष्ट कर दूं
बात उन दिनों की है, जब भारत पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। जयपुर भी उन दिनों ब्रिटिश हुकूमत में चल रहा था । नगर का शासन प्रबन्ध एक पोलिटिकल एजेंट के हाथ में था, जो बड़ा ही अत्याचारी और क्रूर था। गली में कहीं कोई बच्चा टट्टी बैठ जाता या कोई कूड़ा-कर्कट डाल देता तो वह उन्हें मारता-पीटता और भारी जुर्माना कर देता। लोग उसके अत्याचार से तंग आ गये । एक दिन उस बस्ती के लोगों ने गुप्त मीटिंग करके निर्णय कर लिया कि इस बार दुष्ट पोलिटिकल एजेंट आये तो उसे पत्थरों से मारकर यहीं समाप्त कर दें। फिर इस अत्याचारी से पिंड छूट जायगा।
इस निर्णय के अनुसार दूसरे दिन सभी लोग हाथों में लाठी, पत्थर, खुरपी आदि लेकर अपने-अपने मौहल्लों में खड़े हो गये । उसने आते ही अपनी पुरानी आदत के अनुसार लोगों को मारना-पीटना और जुर्माना करना शुरू किया । लोग तो तैयार ही थे । एकदम उस पर टूट पड़े। पत्थरों की मार से वह घायल और बेहोश होकर गिर पड़ा और वहीं उसने दम तोड़ दिया। दूसरे दिन ब्रिटिश पार्लियामेंट में यह खबर पहुँची कि जयपुर के लोगों ने पोलिटिकल एजेंट को मार डाला है । खबर सुनते ही वहाँ के अध्यक्ष को बहुत गुस्सा आया। उसने फौरन आर्डर भेजा-"सारे जयपुर को चारों ओर से घेरकर गोली से उड़ा दो।"
___उस समय जयपुर के प्रधान एक जैन थे। उनके पास यह दुःखद खबर पहुंची । वे गहरे मंथन में पड़ गये । कुछ लोगों के अपराध के कारण सारे शहर को दण्ड भोगना पड़े, साथ ही बेचारे निर्दोष पशुओं को भी बेमौत मरना पड़े, यह तो सरासर अन्याय है, दूषित शासन व्यवस्था का नमूना है। अब क्या किया जाए, जिससे यह हुक्म पलट जाए ? अन्यथा, ब्रिटिश पालियामेंट का हुक्म पलट नहीं सकता। तुरन्त परदुःखकातर नगराधिप-सम जैनमन्त्री को एक बात सूझी-"क्यों न इस हुक्म को मैं ही अपने ऊपर ले लूं । मेरे अकेले के जान देने से सारे नगर की जान बच जायेगी। शरीर का क्या है ? यह तो नश्वर है ही, बुढ़ापा झाँकने लगा है, मौत के कगार पर तो पहुँचा ही हुआ हूँ । शरीर एक न एक दिन समाप्त होगा ही, फिर इस महान कार्य के लिए अपने शरीर का उत्सर्ग कर दूं तो कितना सुन्दर होगा ?" बस, उन्होंने अपने पुत्रों तथा परिवार को गहराई से यह बात समझायी,
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