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________________ ६ आनन्द प्रवचन : भाग १० सेनापति के सामने रुपयों का ढेर लग गया। वह सेठ की इस त्यागवीरता से अतीव प्रसन्न होकर प्रशंसा करते हुए बोला- “सेठ ! जाओ, अब तुम्हारा नगर सुरक्षित है।" नगरसेठ खुशालचन्द्र ने पीढ़ियों से कमाये हुए संचित धन को एक आक्रांता के द्वार पर उड़ेल दिया। पर उन्हें इसकी चिन्ता न थी। सेठ ने सोचा-चलो, धन गया, किन्तु प्रजा तो बच गयी। नगरसेठ घर पहुँचे । सारे अहमदाबाद में यह बात बिजली की तरह फैल गयी कि नगरसेठ ने अपना सर्वस्व त्यागकर हमारे शहर की और हमारी जाति के सम्मान की रक्षा की है। उनके इस अद्भुत त्याग की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। हाँ, तो मैं कह रहा था कि अधिप, चाहे वह किसी भी रूप में हो, उसकी श्रेष्ठता पद, अधिकार या धन से नहीं होती, वह होती है उसके त्याग, बलिदान और समय की सूझबूझ से। अधिप बड़ा क्यों माना जाता है ? __ इसी प्रकार किसी अधिप को बड़ा इसलिए नहीं माना जाता कि उसके पास धन का अम्बार है, वैभव की चमक-दमक है, या सत्ता अथवा प्रभुता का दौर है, या किसी उच्चपद का अधिकार है; अपितु, इसलिए माना जाता है कि उसमें उदारता और दूरदर्शिता है, क्षमा, दया, सहानुभूति आदि गुण हैं। उनके पास न्याय, नीति और धर्म का धन है । अगर धन से ही बड़प्पन मान लिया जाये तो धन तो चोर-लुटेरे, बेईमान आदि भी इकट्ठा कर सकते हैं। बाप-दादों की कमाई हुई पर्याप्त सम्पत्ति भी किसी मूर्ख सन्तान को मिल सकती है। धन-वैभव के आधार पर किसी अधिप को बड़ा मानने का दृष्टिकोण ही गलत है। न वह सत्ता एवं प्रभुता के कारण बड़ा माना जा सकता है। आजकल राजनीतिज्ञ लोग अनेक प्रकार की तिकड़मबाजी से भी सत्ता हथिया लेते हैं। पुराने जमाने में भी अपने पिता को या दूसरे किसी सत्ताधारी को मार कर या हराकर उसका राज्य छीन लिया जाता था। इसी प्रकार मार-काट, चोरी-डकैती के आतंक से भी प्रभुता प्राप्त की जाती है। क्या आप ऐसी सत्ता या प्रभुता पाने वाले अधिप को बड़ा कहेंगे ? कदापि नहीं। कौणिक और औरंगजेब ने अपने पिता को बन्दी बनाकर सत्ता प्राप्त की थी, क्या वे इसलिए महान् (बड़े) माने जा सकते हैं ? कदापि नहीं । जो बड़प्पन की बात सोचें, बड़े कार्य करें, त्याग, सेवा और दया के कार्य करें, वे बड़े हैं। जो दूसरों की भलाई के लिए स्वयं कष्ट सहें, वे बड़े हैं। जो अपनी बड़ाई के भूखे हों, तिकड़मबाजी से धन, सत्ता आदि हासिल करके बड़े बनना चाहें, वे लोकदृष्टि में कभी बड़े नहीं हो सकते। ___ आपको यह तो मालूम ही होगा कि खाने के बड़े कैसे बनते हैं। एक कवि ने इसकी प्रक्रिया इस प्रकार बतायी है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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