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शिष्य की शोभा : विनय में प्रवृत्ति
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पितृहीन बालक कुमारजीव के भाग्य खुल गये । गुरु कृपा उस पर उतरी । वे संस्कृत भाषा, बौद्ध दर्शन आदि के प्रकाण्ड पण्डित बनने के साथ-साथ चरित्रवान, विनीत एवं अनुशासित तथा संयमी भी बन गये ।
अविनीत को विपत्ति और विनीत को सम्पत्ति
वास्तव में जिस शिष्य में विनय का गुण प्रधान रूप से होता है, उसमें अन्य सब गुण - निरहंकारता, नम्रता, मृदुता, ऋजुता, निश्छलता, सेवा-शुश्रूषा, सेवा-भक्ति, समर्पणवृत्ति आदि आ जाते हैं । इसके विपरीत जिस शिष्य में विनय नहीं होता, चाहे वह अन्य सब धार्मिक क्रियाएँ करता हो, स्वयं शास्त्र स्वाध्याय करता हो, ध्यानादि करता हो, वह अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति तथा ज्ञान - अध्यात्मज्ञान का विकास नहीं कर पाता । जब वह आचार्य या गुरु की आज्ञा में नहीं चलता, अपनी मनमानी करता है, तब न तो वह यथार्थ रूप से अध्यात्मज्ञान कर पाता है, न उसके जीवन का गुणों एवं सुसंस्कारों की दृष्टि से निर्माण होता है । कई बार तो ऐसे अविनीत और अहंकारी शिष्य को कोई भी अपने पास रखने को तैयार नहीं होता । तब वह निरंकुश होकर स्वच्छन्द वृत्ति से इधर-उधर भटकता रहता है ।
उज्जयिनी निवासी श्रावक अम्बऋषि विप्र का इकलौता पुत्र निम्बक था । निम्बक की माता श्राविका मालुगा के देहान्त होते ही पिता-पुत्र दोनों को संसार से विरक्त हो गयी । उन्होंने एक जैनाचार्य से साधुदीक्षा ले ली। परन्तु शिष्य बनने से ही बेड़ा पार नहीं हो जाता । निम्बक का जैसा नाम था, वैसा ही नीम-सा कटु और और दुर्विनीत था । चाहे जिस साधु के साथ, यहाँ तक कि गुरु के साथ भी बातबात में झगड़ा कर बैठता, अंटसंट बोलने लगता । उसकी दुर्विनीतता से तंग आकर सभी साधुओं ने आचार्य से प्रार्थना की- "या तो आप इस निम्बक को रखिये, या हमें रखिये । इसकी उद्धतता से हम तंग आ गये हैं, अगर आप इसे रखेंगे तो हम सब अन्यत्र चले जायेंगे ।” गुरुदेव निम्बक की दुर्विनीतता से परिचित थे ही । अतः उन्होंने अपने संघ से निम्बक को बहिष्कृत कर दिया । निम्बक के मोहवश उसका पिता अम्बऋषि भी उसके साथ ही चला गया। दोनों किसी दूसरे आचार्य के पास जाकर रहे, किन्तु वहाँ भी सड़ी कुतिया की तरह उसके अपलक्षण जानकर उसे निकाल दिया गया । उज्जयिनी में जितने भी संघाटक थे, उन सबके प्रमुख साधुओं के पास ये गये, लेकिन कहीं भी टिक न सके ।
एक दिन पिता निम्बक के इस दुर्गुण के कारण बहुत ही दुःखित होकर रुदन करने लगे । उन्हें दुःखित देखकर निम्बक बोला - " आप क्यों रो रहे हैं ? क्या बात है ?" अम्बऋषि ने कहा - " मैं तेरे अपलक्षणों को देखकर रो रहा हूँ, भटकतेभटकते दुःखित हो गया हूँ, तेरे अविनय के दुर्गुण के कारण हमें कहीं स्थान नहीं मिलता । सर्वत्र हमारा विश्वास उठ गया है ।"
निम्बक बोला - " पिताजी ! आप एक बार कहीं ऐसा स्थान ढूंढिए, जहाँ हम
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