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आनन्द प्रवचन : भाग १०
दिखाने, जेल की हवा खिलाने, बदनामी करने आदि का विचार करना, तथा मारण, मोहन, उच्चाटन आदि का प्रयोग करना रौद्रध्यान है। यह चार प्रकार का होता है-हिंसानुबन्धी, मृषानुबन्धी, स्तेनानुबन्धी, संरक्षणानुबन्धी (परिग्रहानुबन्धी) । आज नगरजनों का आहार-विहार, संगति, सिनेमा आदि कुदृश्यों से लगाव, वातावरण सब गन्दा हो रहा है । वह भी आर्त्त-रौद्रध्यान को बढ़ाता है । इहलौकिक एवं पारलौकिक सुख-भोग एवं फल चाहने वालों के ध्यान गलत हैं ? सिनेमा आदि विषय कषायवर्द्धक हैं, उनसे चित्त कभी शान्त नहीं हो सकता। राग-द्वेष आदि बढ़ने से चित्त में कभी स्थिरता नहीं आ सकती।
__ इसलिए सुध्यान की साधना करने के लिए विषय-कषायों की तीव्रता एकदम कम करनी होगी, कुसंगति से दूर रहना होगा, स्वाध्याय, सत्संग, एकान्त-शान्त स्थान में निवास, तत्त्वचिन्तन, धैर्य, फलाकांक्षा-निवारण आदि साधन अपनाने आवश्यक हैं। तत्पश्चात् तत्त्वानुशासन के अनुसार आठ बातों का ध्यान-साधक को सर्वप्रथम विचार कर लेना चाहिए
ध्याता, ध्यान-फलं, ध्येयं, यस्य, यत्र, यदा, यथा।
इत्येतवत्र बोद्धव्यं ध्यातुंकामेन योगिना ॥ "ध्याता (इन्द्रिय और मन का निग्रहकर्ता), ध्यान (इष्ट विषय में लीनता), फल (संवर-निर्जरा आदि के रूप में), ध्येय (इष्ट-जिसका ध्यान करना हो, वह पिंड, पद, रूप आदि), यस्य (ध्यान का स्वामी), यत्र (ध्यान करने योग्य क्षेत्रस्थान), यदा (ध्यान का समय) और यथा (ध्यान की योग्य विधि) ये आठ बातें ध्यान करने के इच्छुक योगी (ध्याता) को समझ लेनी चाहिए।"
उसके बाद धर्मध्यान के ४ भेद, आज्ञाविचय आदि चार आलम्बन तथा पिण्ड, पद या रूप में से किसी का आलम्बन आदि का विचार करना चाहिए। फिर ध्यान का अभ्यास परिपक्व हो जाने पर शुक्लध्यान में प्रवृत्त होना चाहिए। यह निरालम्ब एव रूपातीत ध्यान है। इसके चार प्रकार हैं-पृथक्त्ववितर्क-सविचारी, एकत्ववितर्क-अविचारी, सूक्ष्मक्रिय-अप्रतिपाती और समुच्छिन्नक्रिय अनिवृत्ति ।।
__ शुक्लध्यान के चार आलम्बन (क्षमा, निर्लोभता, मृदुता, और ऋजता) तथा चार अनुप्रेक्षाएँ हैं।
सुध्यान का विषय काफी विस्तृत है । मैं आपको अभी इतनी गहराई में नहीं ले जाना चाहता । अभी तो मैंने सुध्यान की झाँकी आपको दे दी है। सुध्यान के साथ ज्ञान न हो तो
___ कोई कह सकता है कि चारित्र की शोभा के लिए जब सुध्यान से काम चल जाता है तो ज्ञान की क्या जरूरत है ? ज्ञान का सब काम क्या सुध्यान नहीं कर सकता ? इस सम्बन्ध में गहराई से विचारने पर हमे लगता है कि अकेले सुध्यान से चारित्र की गोभा मे कमी रह जाती है। जैसे एक दीवार है, उसे पहले ईंट, चूने
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