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आनन्द प्रवचन : भाग १०
मद्रासी बहन ने कहा--"इतना सब कर लेने पर भी पूरणपोली नहीं बन रही है, इसलिए तुम्हें याद किया गया है ।" उसने मुस्कराते हुए कहा-“वाह ! तुम भी खूब हो । पूरणपोली बनाने के लिए न तो अमुक पोशाक पहनने की जरूरत है, और न ही गहने व कपड़े उतारने की। इसके लिए तो सर्वप्रथम बनाने की विधि के ज्ञान की, फिर अमुक साधनों को जुटाकर उन्हें क्रियान्वित करने की जरूरत है। लाओ, मैं इन सब मेहमानों के लिए पूरणपोली बना देती हूँ।" उसने मद्रासी दम्पति के देखते ही देखते झटपट पूरणपोली बना दी । अब तो मद्रासी दम्पति को समझ में आ गया कि पूरणपोली बनाने के लिए अज्ञान और गलत समझ के कारण कितने उलटे-सुलटे उपाय अजमा लिये गये थे।
बन्धुओ ! इससे आप समझ गये होंगे कि चारित्र को सुशोभित एवं उज्ज्वल करने के लिए न तो अमुक वेशभूषा की जरूरत है, और न ही अटपटे क्रियाकाण्डों की, अपितु सुज्ञान और सुध्यान की आवश्यकता है, जिससे साधक यह जान सके कि यह क्रिया क्यों और किस लिए है ? मुक्ति-प्राप्ति में यह क्रिया कहाँ तक सहायक है ? चारित्र के कौन-कौन से अंग हैं ? उन्हें जीवन में कैसे उतारा जा सकता है ? चारित्र के साथ दोष (अतिचार) कैसे प्रविष्ट हो जाते हैं, उनके निवारणोपाय कौन-कौन से हैं ? साथ ही चारित्र के साथ सतत् यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि चारित्र-पालन में कहीं कोई गलती तो नहीं हो रही है ? शक्ति होते हुए भी चारित्र के अमुक अंग का पालन करने में मैं देरी या टालमटूल क्यों कर रहा हूँ ? इस लापरवाही से मैं ध्येय से कितना दूर जा पडूंगा? ध्येय-प्राप्ति के लिए इसी एक ही में सारा चिन्तन और सारी शक्ति लगाकर प्राणप्रण से क्यों नहीं जुट जाता? निष्कर्ष यह है कि चारित्र तभी चमकता है, तभी ध्येय की ओर द्रतगति के प्रयाण करता है, जब उसके साथ ज्ञान का प्रकाश हो, और सुध्यान की सतत प्रेरणा और सावधानी हो । साधनामय जीवन के लिए ज्ञान-ध्यान और चारित्र आवश्यक
बड़े-बड़े यन्त्रों को ठीक ढंग से चलाने और उत्पादन बढ़ाने के लिए इंजीनियर को उसके चलाने का तथा उसके साधनों का ज्ञान तथा सावधानी एवं चलाने की अन्तःप्रेरणा नितान्त आवश्यक होती है। अन्यथा, कोई अनाड़ी व्यक्ति, जिसे उसके कल. पुर्जी का कोई ज्ञान नहीं है, तथा उसके कलपुर्जी को भलीभाँति स्मूदली (smoothly) चलने के लिए किन-किन चीजों को देना चाहिए ? इसकी जानकारी नहीं है, अगर वह मशीन को अंधाधुन्ध चलाता ही जायगा, कौन-सा पुर्जा बिगड़ गया है ? कौन-सा पुर्जा नया डालना है ? इत्यादि सावधानी या ध्यान नहीं रखेगा। तो ऐसी स्थिति में मशीन के चलाने का क्या नतीजा आएगा ? वह शीघ्र ही टूट जायगी, बिगड़ जायगी, और चलती-चलती ठप्प हो जायगी।
यही हाल साधनामय जिन्दगी में चारित्ररूप मशीन का है, उसमें अंधाधुन्ध क्रियाएं की जाएंगीं, उसकी क्रिया की विधि या उपयोगिता का बिलकुल ज्ञान
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